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आराधना कथाकोश
तुम सुनोगी। अच्छा तो सुनो, मैं सुनाता हूँ । विजयार्द्ध पर्वतकी दक्षिण श्रेणी में विद्युत्प्रभ नामका एक शहर है। उसके राजाका नाम भी विद्युत्प्रभ है । विद्युत्प्रभकी रानीका नाम विद्युल्लेखा है । ये दोनों राजा-रानी ही मुझ अभागे माता-पिता हैं । मेरा नाम बालदेव है । एक दिन मैं अपनी प्रिया कनकमाला के साथ विमानमें बैठा हुआ दक्षिणको ओर जा रहा था ।
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रास्ते में मुझे रामगिरी पर्वत पड़ा। उस पर मेरा विमान अटक गया। मैंने नीचे नजर डालकर देखा तो मुझे एक मुनि देख पड़े । उन ' पर मुझे बड़ा गुस्सा आया । मैंने तब कुछ आगा-पोछा न सोचकर उन मुनिको बहुत कष्ट दिया, उन पर घोर उपसर्ग किया। उनके तप के प्रभाव से जिनभक्त पद्मावती देवीका आसन हिला और वह उसी समय वहाँ आई । उसने मुनिका उपसर्ग दूर किया। सच है, साधुओं पर किये उपद्रवको सम्यग्दृष्टि कभी नहीं सह सकते । माँ, उस समय देवीने गुस्सा होकर मेरी सब विद्याएँ नष्ट कर दीं । मेरा सब अभिमान चूर हुआ । मैं एक मद रहित हाथी की तरह निःसत्व- तेज रहित हो गया । मैं अपनी मैं इस दशा पर बहुत पछताया । मैं रोकर देवी से बोला- प्यारी माँ, आपका अज्ञानी बालक हूँ । मैंने जो कुछ यह बुरा काम किया वह सब मूर्खता और अज्ञानसे न समझ कर ही किया है । आप मुझे इसके लिए क्षमा करें और मेरी विद्याएँ पोछी मुझे लौटा दें । इसमें कोई सन्देह नहीं कि मेरी यह दोनता भरो पुकार व्यर्थ न गई । देवोने शान्त होकर मुझे क्षमा किया और वह बोली- मैं तुझे तेरी विद्याएँ लौटा देतो, पर मुझे तुझसे एक महान् काम करवाना है। इसलिए मैं कहती हूँ वह कर । समय पाकर सब विद्याएँ तुझे अपने आप सिद्ध हो जायेंगी । मैं हाथ जोड़े हुए उसके मुँहकी ओर देखने लगा । वह बोली - "हस्तिनापुर के मसान में एक विपत्तिकी मारो स्त्रीके गर्भसे एक पुण्यवान् और तेजस्वी पुत्ररत्न जन्म लेगा । उस समय पहुंचकर तू उसकी सावधानोसे रक्षा करना और अपने घर लाकर पालना - पोसना | उसके राज्य समय तुझे सब विद्याएँ सिद्ध होंगी ।" माँ उसको आज्ञासे मैं तभी से यहाँ इस वेषमें रहता हूँ । इसलिए कि मुझे कोई पहिचान न सके । माँ, यही मुझ अभागेको कथा है । आज मैं आपकी दयासे कृतार्थ हुआ । पद्मावतो विद्याधरका हाल सुनकर दुःखो जरूर हुई, पर उसे अपने पुत्रका रक्षक मिल गया, इससे कुछ सन्तोष भी । उसने तब अपने प्रिय बच्चेको विद्याधरके हाथ में रखकर कहाहुआ भाई, इसकी सावधानीसे रक्षा करना । अब इसके तुम ही सब प्रकार
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