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आराधना कथाकोश निरोगी होना, चेहरे पर सदा प्रसन्नता रहना, धनादि विभूतिका मिलना, ऐश्वर्यका प्राप्त होना, सुन्दर होना, तेजस्वी और बलवान होना
और अन्त में स्वर्ग या मोक्षका सुख प्राप्त करना ये सब औषधिदानके फल हैं । इसलिये जो सुखी होना चाहते हैं उन्हें निर्दोष औषधिदान करना उचित है । इस औषधिदानके द्वारा अनेक सज्जनोंने फल प्राप्त किया है, उन सबके सम्बन्धमे लिखना औरोंके लिये नहीं तो मुझ अल्पबुद्धिके लिये तो अवश्य असम्भव है। उनमें से एक वृषभसेनाका पवित्र चरित यहाँ
संक्षिप्तमें लिखा जाता है । आचार्योंने जहाँ औषधिदान देनेवालेका उल्लेख . किया है वहाँ वृषभसेनाका हो प्रायः कथन आता है। उन्हींका अनुकरण मैं भी करता हूँ।
भगवान्के जन्मसे पवित्र इस भारतवर्षके जनपद नामके देशमें नाना प्रकारकी उत्तमोत्तम सम्पत्तिसे भरा अतएव अपनी सन्दरतासे स्वर्गकी शोभाको नीची करनेवाला कावेरी नामका नगर है । जिस समयकी यह कथा है, उस समय कावेरी नगरके राजा उग्रसेन थे। उग्रसेन प्रजाके सच्चे हितैषी और राजनीतिके अच्छे पण्डित थे।
यहाँ धनपति नामका एक अच्छा सद्गृहस्थ सेठ रहता था। जिन भगवान्की पूजा-प्रभावनादिसे उसे अत्यन्त प्रेम था। इसकी स्त्री धनश्री इसके घरकी मानों दूसरी लक्ष्मी थी। धनश्री सती और बड़े सरल मनकी थी। पूर्व पुण्यसे इसके वृषभसेना नामकी एक देवकुमारीसी सुन्दरी और सौभाग्यवती लड़की हुई। सच है, पुण्यके उदयसे क्या प्राप्त नहीं होता। वृषभसेनाकी धाय रूपवती इसे सदा नहाया-धुलाया करती थी। इसके नहानेका पानी बह-बह कर एक गढ़ेमें जमा हो गया था। एक दिनको बात है कि रूपमती वृषभसेनाको नहला रही थी। इसी समय एक महारोगी कुत्ता उस गढ़े में, जिसमें कि वषभसेनाके नहानेका पानी इकट्ठा हो रहा था, गिर पड़ा। क्या आश्चर्यकी बात है कि जब वह उस पानीमेंसे निकला तो बिलकुल नीरोग देख पड़ा। रूपवती उसे देखकर चकित हो रही। उसने सोचा-केवल साधारण जलसे इस प्रकार रोग नहीं जा सकता। पर यह वृषभसेनाके नहानेका पानी है। इसमें इसके पुण्यका कुछ भाग जरूर होना चाहिये । जान पड़ता है वृषभसेना कोई बड़ी भाग्यशालिनी लड़की है। ताज्जुब नहीं कि यह मनुष्य रूपिणी कोई देवी हो ! नहीं तो इसके नहानेके जलमें ऐसी चकित करनेवाली करामात हो ही नहीं सकती। इस पानीकी और परीक्षा कर देख लं, जिससे और भी दृढ़ विश्वास हो जायगा कि यह पानी सचमुच ही क्या रोगनाशक है ?
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