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दान करनेवालोंको कथा
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विद्याधर, चक्रवर्ती आदि महापुरुषोंकी पदवियां, अच्छे सत्पुरुषोंकी संगति, दिनों-दिन ऐश्वर्यादिकी बढ़वारी, ये सब पात्रदानके फलसे प्राप्त होते हैं । न यही, किन्तु इस पात्रदानके फलसे मोक्ष प्राप्ति भी सुलभ है। राजा श्रेयांसने दानके ही फलसे मुक्ति लाभ किया था। इस प्रकार पात्रदानका अचिन्त्य फल जानकर बुद्धिवानोंको इस ओर अवश्य अपने पानको खींचना चाहिए । जिन-जिन सत्पुरुषोंने पात्रदानका आज तक फल पाया है, उन सबके नाम मात्रका उल्लेख भी जिन भगवान्के बिना और कोई नहीं कर सकता, तब उनके सम्बन्ध में कुछ कहना या लिखना मुझसे मतिहीन मनुष्योंके लिए तो असंभव ही है। आचार्योंने ऐसे दानियोंमें सिर्फ चार जनोंका उल्लेख शास्त्रों में किया है। इस कथामें उन्हींका संक्षिप्त चरित मैं पुराने शास्त्रोंके अनुसार लिखंगा। उन दानियोंके नाम हैंश्रीषेण, वृषभसेना, कौण्डेश और एक पशु बराह-सूअर । इनमें श्रीषणने आहारदान, वृषभसेनाने औषधिदान, कौण्डेशने शास्त्रदान और सूअरने अभयदान दिया था। उनकी क्रमसे कथा लिखी जाती है ।
प्राचीन कालमें श्रीषेण राजाने आहारदान दिया। उसके फलसे वे शान्तिनाथ तीर्थकर हुए । श्रीशान्तिनाथ भगवान् जय लाभ करें, जो सब प्रकारका सुख देकर अन्तमें मोक्ष सुखके देनेवाले हैं और जिनका पवित्र चरितका सुनना परम शान्तिका कारण है। ऐसे परोपकारी भगवान्का परम पवित्र और जीव मात्र का हित करनेवाला चरित आप लोग भी सुनें, जिसे सुनकर आप सुखलाभ करेंगे।
प्राचीन कालमें इसी भारतवर्ष में मलय नामका एक अति प्रसिद्ध देश था। रत्नसंचयपूर इसीको राजधानी थी। जैनधर्मका इस सारे देशमें खूब प्रचार था। उस समय इसके राजा श्रीषेण थे। श्रीषेण धर्मज्ञ, उदारमना, न्यायप्रिय, प्रजाहितैषी, दानी और बड़े विचारशील थे। पुण्यसे प्रायः अच्छे-अच्छे सभी गुण उन्हें प्राप्त थे। उनका प्रतिद्वंद्वी या शत्रु कोई न था। वे राज्य निर्विघ्न किया करते थे । सदाचारमें उस समय उनका नाम सबसे ऊँचा था । उनकी दो रानियाँ थीं। उनके नाम थे सिंहनन्दिता और अनन्दिता। दोनों हो अपनी-अपनी सुन्दरतामें अद्वितीय थीं, विदुषी और सती थीं। इन दोनों के दो पुत्र हुए। उनके नाम इन्द्रसेन और उपेन्दसेन थे। दोनों हो भाई सुन्दर थे, गुणी थे, शूरवीर थे और हृदयके बड़े शुद्ध थे। इस प्रकार श्रीषेण धन-सम्पत्ति, राज्य-वैभव, कुटुम्ब-परिवार आदिसे
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