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सेमन्तभद्राचार्यको कथा राज ! सुना है कि आपमें कोई ऐसो शक्ति है, जिसके द्वारा शिवमूर्तिको भी आप खिला सकते हैं, तो क्या यह बात सत्य है ? और सत्य है तो लोजिये यह भोजन उपस्थित है, इसे महादेवको खिलाइये।
उत्तरमें आचार्यने 'अच्छी बात है' यह कहकर राजाके लाये हुए सब पक्वानोंको मन्दिरके भीतर रखवा दिया और सब पुजारी पंडोंको मन्दिर बाहर निकालकर भीतरसे आपने मन्दिरके किवाड़ बन्द कर लिये । इसके बाद लगे उसे आप उदरस्थ करने । आप भखे तो खूब थे हो इसलिये थोड़ी ही देर में सब आहारको हजमकर आपने झटसे मन्दिरका दरवाजा खोल दिया और निकलते ही नौकरोंको आज्ञा की कि सब बरतन बाहर निकाल लो। महाराज इस आश्चर्यको देखकर भौंचकसे रह गये। वे राजमहल लौट गये। उन्होंने बहुत तर्क-वितर्क उठाये पर उनकी समझमें कुछ भी नहीं आया कि वास्तवमें बात क्या है ? ___ अब प्रतिदिन एकसे एक बढ़कर पक्वान्न आने लगे और आचार्य महाराज भी उनके द्वारा अपनी व्याधि नाश करने लगे। इस तरह पूरे छह महिना बीत गये । आचार्यका रोग भी नष्ट हो गया।
एक दिन आहारराशिको ज्योंकी त्यों बची हुई देखकर पुजारी-पण्डोंने उनसे पूछा, योगिराज ! यह क्या बात है ? क्यों आज यह सब आहार यों ही पड़ा रहा ? आचार्य ने उत्तर दिया-राजाकी परम भक्तिसे भगवान् बहुत खुश हुए, वे अब तृप्त हो गये हैं। पर इस उत्तरसे उन्हें सन्तोष नहीं हुआ। उन्होंने जाकर आहारके बाकी बचे रहनेका हाल राजासे कहा । सुनकर राजाने कहा-अच्छा इस बातका पता लगाना चाहिये, कि वह योगी मन्दिरके किंवाड़ देकर भीतर क्या करता है ? जब इस बातका ठीक-ठीक पता लग जाय तब उससे भोजनके बचे रहनेका कारण पूछा जा सकता है और फिर उसपर विचार भी किया जा सकता है। ' बिना ठीक हाल जाने उससे कुछ पूछना ठीक नहीं जान पड़ता।
एक दिनकी बात है कि आचार्य कहीं गये हुए थे और पीछेसे उन सबने मिलकर एक चालाक लड़केको महादेवके अभिषेक जलके निकलनेकी नालीमें छुपा दिया और उसे खूब फूल पत्तोंसे ढक दिया। वह वहाँ छिपकर आचार्यकी गुप्त क्रिया देखने लगा।
सदाके माफिक आज भी खूब अच्छे-अच्छे पक्वान्न आये । योगिराजने उन्हें भीतर रखवाकर भीतरसे मन्दिरका दरवाजा बन्द कर लिया और आप लगे भोजन करने । जब आपका पेट भर गया, तब किवाड़ खोलकर
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