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सम्यग्दर्शनके प्रभावकी कथा
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लड़का आया है । पर बड़े दुःखको बात है कि वह बेचारा पागल हो गया जान पड़ता है। उसकी देवकूमारसी सुन्दर जिन्दगी धूलधानी हो गई ! कर्मोंकी लीला बड़ी ही विचित्र है। मुझे तो उसकी वह स्वर्गीय सुन्दरता
और साथ हो उसका वह पागलपन देखकर उस पर बड़ी दया आती है । में उसे शहर बाहर एक स्थान पर बैठा आया हूँ। अपने पिताकी बातें सुनकर अभयमतीको बड़ा कौतुक हआ | उसने सोमशर्मासे पूछा-हाँ तो पिताजी उसमें किस तरहका पागलपन है ? मुझे उसके सूननेकी बड़ी उत्कण्ठा हो गई है। आप बतलावें । सोमशर्माने तब अभयमतीसे श्रेणिककी वे सब चेष्टाएँ-कन्धे पर चढ़ना-चढ़ाना, छोटे गाँवको बड़ा और बड़े को छोटा कहना, वक्षके नोचे छत्री चढ़ा लेना और धूपमें उतार देना, पानीमें चलने समय जते पहर लेना और रास्ते में चलते उन्हें हाथमें ले लेना आदि कह सुनाई। अभयमतीने उन सबको सूनकर अपने पितासे कहा-पिताजी, जिस पुरुषने ऐसी बातें को हैं उसे आप पागल या साधारण पुरुष न समझें। वह तो बड़ा हो बुद्धिमान् है ! मुझे मालूम होत है उसकी बातोंके रहस्य पर आपने ध्यानसे विचार न किया इसीसे आपको उसकी बातें बे-सिर पैरकी जान पड़ी। पर ऐसा नहीं है। उन सबमें कुछ न कुछ रहस्थ जरूर है। अच्छा, वह सब मैं आपको समझाती हूँ-पहले ही उमने जो यह कहा था कि आप मुझे अपने कन्धे पर चढ़ा लीजिए और आप मेरे कन्धों पर चढ़ जाइये, इससे उसका मतलब था, आप हम दोनों एक ही रास्तेसे चलें। क्योंकि स्कन्ध शब्द का रास्ता अर्थ भी होता है। और यह उसका कहना ठीक भी था। इसलिये कि दो जने साथ रहनेसे हर तरह बड़ी सहायता मिलती रहती है ।
दूसरे उसने दो ग्रामोंको देखकर बड़ेको तो छोटा और छोटेको बड़ा कहा था। इससे उसका अभिप्राय यह है कि छोटे गाँवके लोग सज्जन हैं, . धर्मात्मा हैं, दयालु हैं, परोपकारी हैं और हर एककी सहायता करनेवाले हैं । इसलिए यद्यपि वह गाँव छोटा था, पर तब भी उसे बड़ा ही कहना चाहिए । क्योंकि बड़प्पन गुणों और कर्तव्य पालनसे कहलाता है। केवल बाहरो चमक दमकसे नहीं। और बड़े गाँवको उसने तब छोटा कहा, इससे उसका मतलब स्पष्ट ही है कि उसके रहवासी अच्छे लोग नहीं हैं, उनमें बड़प्पन के जो गुण होने चाहिये वे नहीं हैं।
तोसरे उसने वृक्षके नीचे छत्रीको चढ़ा लिया था और रास्ते में उसे उतार लिया था। ऐसा करनेसे उसकी मंशा यह थी। रास्ते में छत्रीको
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