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आराधना कथाकोश
से कहा-जिनदास, यदि तू यह कह दे कि जिनेन्द्र भगवान् कोई चीज नहीं, जैनधर्म कोई चीज नहीं, तो तुझे में जीता छोड़ सकता है, नहीं तो मार डालंगा । उस देवका वह डराना सुन जिनदास वगैरहने हाथ जोड़कर श्रीमहावीर भगवान्को बड़ी भक्तिसे नमस्कार किया और निडर होकर वे उससे बोले-पापी, यह हम कभी नहीं कह सकते कि जिन भगवान् और उनका धर्म कोई चीज नहीं, बल्कि हम यह दृढ़ताके साथ कहते हैं कि केवलज्ञान द्वारा सूर्यसे अधिक तेजस्वी जिनेन्द्र भगवान् और संसार द्वारा पूजा जानेवाला उनका मत सबसे श्रेष्ठ है। उनको समानता करनेवाला कोई देव और कोई धर्म संसारमें है ही नहीं। इतना कह कर ही जिनदासने सबके सामने ब्रह्मदत्त चक्रवर्तीकी कथा, जो कि पहले लिखी जा चुकी है, कह सुनाई। उस कथाको सुनकर सबका विश्वास और भी दृढ़ हो गया। ___इन धर्मात्माओं पर इस विपत्तिके आनेसे उत्तरकुरुमें रहनेवाले अनाव्रत नामके यक्षका आसन कँपा। उसने उसी समय आकर क्रोधसे कालदेवके सिर पर चक्रको बड़ी जोरकी मार जमाई और उसे उठाकर बडवानलमें डाल दिया।
जहाजके लोगोंकी इस अचल भक्तिसे लक्ष्मी देवी बड़ी प्रसन्न हई। उसने आकर इन धर्मात्माओंका बड़ा आदर-सत्कार किया और इनके लिए भक्तिसे अर्घ चढ़ाया। सच है, जो भव्यजन सम्यग्दर्शनका पालन करते हैं, संसारमें उनका आदर, मान कौन नहीं करता । इसके बाद जिनदास वगैरह सब लोग कुशलतासे अपने घर आ गये। भक्तिसे उत्पन्न हुए पुण्यने इनकी सहायता की । एक दिन मौका पाकर जिनदासने अवधिज्ञानी मुनिसे कालदेवने ऐसा क्यों किया, इस बाबत खुलासा पूछा। मुनिराजने इस बैरका सब कारण जिनदाससे कहा। जिनदासको सुनकर सन्तोष हुआ।
जो बुद्धिमान् हैं, उन्हें उचित है या उनका कर्तव्य है कि वे परम सुखके लिए संसारका हित करनेवाले और मोक्षके कारण पवित्र सम्यग्दर्शनको ग्रहण करें। इसे छोड़कर उन्हें और बातोंके लिए कष्ट उठाना उचित नहीं, कारण वे मोक्ष के कारण नही हैं ।
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