________________
३६६
आराधना कथाकोश
यह सब योग कठिन होने पर भी मिल सकता है, पर यदि प्रमादसे मनुष्य जन्म एक बार नष्ट कर दिया जाय तो उसका मिलना बेशक कठिन ही नहीं, किन्तु असम्भव है । वह प्राप्त होता है पुण्यसे, इसलिए पुण्यके प्राप्त करनेका यत्न करना अत्यन्त आवश्यक है ।
८. कछुएका दृष्टान्त सबसे बड़े स्वयंभूरमण समुद्रको एक बड़े भारी चमड़ेमें छोटा-सा छेद करके उससे ढक दीजिए । समुद्रमें घूमते हुए एक कछुएने कोई एक हजार वर्ष बाद उस चमड़ेके छोटेसे छेदमेंसे सूर्यको देखा। वह छेद उससे फिर छट गया। भाग्यसे यदि फिर कभी ऐसा ही योग मिल जाय कि वह उस छिद्र पर फिर भी आ पहुंचे और सूर्यको देख ले, पर यदि मनुष्य जन्म इसी तरह प्रमादसे नष्ट हो गया तो सचमुच हो उसका मिलना बहुत कठिन है।
९. युगका दृष्टान्त दो लाख योजन चौड़े पूर्वके लवणसमुद्रमें युग (धुरा) के छेदसे गिरी हुई समिलाका पश्चिम समुद्र में बहते हुए युग (धुरा ) के छेदमें समय पाकर प्रवेश कर जाना सम्भव है, पर प्रमाद या विषयभोगों द्वारा गँवाया हुआ मनुष्य जीवन पुण्यहीन पुरुषोंके लिए फिर सहसा मिलना असम्भव है। इसलिए जिन्हें दुःखोंसे छूटकर मोक्ष सुख प्राप्त करना है उन्हें तबतक ऐसे पुण्यकर्म करते रहना चाहिए कि जिनसे मोक्ष होने तक बराबर मनुष्य जीवन मिलता रहे।
१०. परमाणुका दृष्टान्त चार हाथ लम्बे चक्रवर्तीके दण्डरत्नके परमाणु बिखर कर दूसरी अवस्थाको प्राप्त कर लें और फिर वे ही परमाणु देवयोगसे फिर कभी दण्डरत्नके रूपमें आ जाएँ तो असम्भव नहीं, पर मनुष्य पर्याय यदि एक बार दुष्कर्मों द्वारा व्यर्थ खो दिया तो इसका फिर उन अभागे जीवोंको प्राप्त हो जाना जरूर असम्भव है। इसलिए पण्डितोंको मनुष्य पर्यायकी प्राप्तिके लिए पुण्यकर्म करना कर्तव्य है।
इस प्रकार सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जीवनको अत्यन्त दुर्लभ समझ कर बुद्धिमानोंको उचित है कि वे मोक्ष सुखके लिए संसारके जीवमात्रका हित करनेवाले पवित्र जैनधर्मको ग्रहण करें।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org