________________
३६४
आराधना कथाकोश
ऐसा ही किया । जब अभिमानी शत्रुको अयोध्यासे अन्न न मिला तब थोड़े ही दिनों में उसकी अकल ठिकाने पर आ गई । उसकी सेना भूखके मारे मरने लगी । आखिर जितशत्रुको लौट जाना हो पड़ा । जब शत्रु 1 अयोध्या का घेरा उठा चल दिया तब प्रजाने राजासे अपने-अपने धानके ले जाने की प्रार्थना की। राजाने कह दिया कि हाँ अपना-अपना धान पहचान कर सब लोग ले जायें। कभी कर्मयोगसे ऐसा हो जाना भी सम्भव है, पर यदि मनुष्य जन्म एक बार व्यर्थ नष्ट हो गया तो उसका पुनः मिलना अत्यन्त ही कठिन है । इसलिए इसे व्यर्थ खोना उचित नहीं । इसे तो सदा शुभ कामोंमें ही लगाये रहना चाहिए ।
४. जुआका दृष्टान्त
शतद्वारपुर में पाँचसौ सुन्दर दरवाजे हैं । उन एक-एक दरवाजों में जुआ खेलनेके पाँच-पाँचसौ अड्डे हैं । उन एक-एक अड्डोंमें पाँच-पाँच सौ जुआरी लोग जुआ खेलते हैं । उनमें एक चयी नामका जुआरी है । ये सब जुआरी कौड़ियाँ जीत-जीत कर अपने-अपने गाँवोंमें चले गये । चयी वहीं रहा । भाग्यसे इन सब जुआरियोंका और इस चयीका फिर भी कभी मुकाबला होना सम्भव है, पर नष्ट हुए मनुष्य जन्मका पुण्यहोन पुरुषोंको फिर सहसा मिलना दरअसल कठिन है ।
जुआका दूसरा दृष्टान्त
1
इसी शतद्वारपुर में निर्लक्षण नामका एक जुआरी था। उसके इतना भारी पापकर्मका उदय था कि वह स्वप्न में भी कभी जीत नहीं पाता था । एक दिन कर्मयोगसे वह भी खूब धन जीता । जीतकर उस धनको उसने याचकोंको बाँट दिया । वे सब धन लेकर चारों दिशाओंमें जिसे जिधर जाना था उधर ही चले गये । ये सब लोग दैवयोगसे फिर भी कभी इकट्ठे हो सकते हैं, पर गया जन्म फिर हाथ आना दुष्कर है । इसलिए जबतक मोक्ष न मिले तबतक यह मनुष्य जन्म प्राप्त होता रहे, इसके लिए धर्मकी शरण सदा लिये रहना चाहिए ।
५. रत्न- दृष्टान्त
भरत, सगर, मघवा, सनत्कुमार, शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरहनाथ, सुभौम, महापद्म, हरिषेण, जयसेन और ब्रह्मदत्त ये बारह चक्रवर्ती, इनके मुकुटों में जड़े हुए मणि, जिन्हें स्वर्गों के देव ले गये हैं, और इनके वे चौदह
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org