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आधना कथाकोश नैमित्तिकका कहना ठीक हुआ। हरिषेण दूसरे राजाओं पर विजय करता हुआ इसी सिन्धुनदीके किनारे पर आकर ठहरा । इसी समय सिन्धुनदकी कुमारियाँ भी यहाँ स्नान करनेके लिए आई हुई थीं। प्रथम ही दर्शनमें दोनोंके हृदयोंमें प्रेमका अंकुर फूटा और फिर वह क्रमसे बढ़ता ही गया। सिन्धुनदसे यह बात छिपी न रही। उसने प्रसन्न होकर हरिषेणके साथ अपनी लड़कियोंका ब्याह कर दिया।
रातको हरिषेण चित्रशाला नामके एक खास महलमें सोया हुआ था। इसी समय एक वेगवती नामकी विद्याधरी आकर हरिषेणको सोता हुआ ही उठा ले चलो। रास्तेमें हरिषेण जग उठा। अपनेको एक स्त्री कहों लिये जा रही है, इस बातकी मालूम होते ही उसे बड़ा गुस्सा आया। उसने तब उस विद्याधरीको मारनेके लिये घूसा उठाया। उसे गुस्सा हुआ देख विद्याधरी डरी और हाथ जोड़ कर बोली-महाराज, ६.मा कोजिए। मेरी एक प्रार्थना सुनिए। विजयार्द्ध पर्वत पर बसे हुए सूर्योदर शहरके राजा इन्द्रधनु और रानी बुद्धमतीको एक कन्या है। उसका नाम जयचन्द्रा है । वह सुन्दर है, बुद्धिमती है और बड़ी चतुर है। पर उसमें एक ऐब है और वह महा ऐब है। वह यह कि उसे पुरुषोंसे बड़ा द्वेष है, पुरुषोंको वह आँखोंसे देखना तक पसन्द नहीं करती। नैमित्तिकने उसके सम्बन्धमें कहा है कि जो सिन्धुनदकी सौ राजकुमारियोंका पति होगा, वही इसका भी होगा। तब मैंने आपका चित्र ले जाकर उसे बतलाया। वह उसे देखकर बड़ी प्रसन्न हुई। उसका सब कुछ आप पर न्योछावर हो चुका है । वह आपके सम्बन्धकी तरह-तरहकी बातें पूछा करतो है आर बड़े चावसे उन्हें सुनती है। आपका जिकर छिड़ते ही वह बड़े ध्यानसे उसे सुनने लगती है। उसकी इन सब चेष्टाओंसे जान पड़ता है कि उसका आप पर अत्यन्त प्रेम है। यही कारण है कि मैं उसकी आज्ञासे आपको उसके पास लिये जा रही हूँ। सुनकर हरिषेण बहुत खुश हुआ और फिर वह कुछ भी न बोलकर जहाँ उसे विद्याधरी लिवा गई चला गया। वेगवतीने हरिषेणको इन्द्रधनुके महल पर ला रक्खा। हरिषेणके रूप और गुणोंको देख कर सभीको बड़ो प्रसन्नता हुई । जयचन्द्राके माता-पिताने उसके ब्याहका भी दिन निश्चित कर दिया। जो दिन ब्याहका था उस दिन राजकूमारी जयचन्द्राके मामाके लड़के गंगाधर और महीधर ये दोनों हरिषेण पर चढ़ आये। इसलिये कि वे जयचन्द्राको स्वयं ब्याहना चाहते थे। हरिषेणने इनके साथ बड़ी वीरतासे युद्ध कर इन्हें हराया। इस युद्ध में हरिषेणके हाथ जवाहिरात और बहुत धन-दौलत लगी। यह चक्रवर्ती
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