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आराधना कथाकोश
इधर विमलाके लड़के को भी अत्यन्त वैराग्य हुआ। वह स्वर्ग मोक्षके सुखों को देनेवाली जिनदीक्षा लेकर योगी बन गया । यहाँसे फिर यह विशुद्धात्मा धर्मोपदेशके लिये अनेक देशों और शहरोंमें घूम-फिर कर तपस्या करता हुआ और अनेक भव्यजनों को आत्महितके मार्ग पर लगाता हुआ सौरीपुर के उत्तर भागमें यमुनाके पवित्र किनारे पर आकर ठहरा यहाँ शुक्लध्यान द्वारा कर्मोंका नाश कर इसने लोकालोकका ज्ञान करानेवाला केवलज्ञान प्राप्त किया और संसार द्वारा पूज्य होकर अन्तमें मुक्ति लाभ किया । वे विमला - सुत मुनि मुझे शान्ति दें ।
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जिन भगवान् आप भव्यजनोंको और मुझे मोक्षका सुख दें, जो संसार - सिन्धु में डूबते हुए असहाय निराधर जीवोंको पार करनेवाले हैं, कर्म-शत्रुओं का नाश करनेवाले हैं, संसारके सब पदार्थोंको देखनेवाले केवलज्ञान से युक्त हैं, सर्वज्ञ हैं, स्वर्ग तथा मोक्षका सुख देनेवाले हैं और देवों, विद्याधरों, चक्रवर्तियों आदि प्रायः सभी महापुरुषोंसे पूजा किये जाते हैं ।
७६. धर्मसिंह मुनिकी कथा
इस प्रकारके देवों द्वारा जो पूजा-स्तुति किये जाते हैं और ज्ञानके समुद्र हैं, उन जिनेन्द्र भगवान्को नमस्कार कर धर्मसिंह मुनिकी कथा लिखी जाती है ।
दक्षिण देश के कौशलगिर नगरके राजा वीरसेनकी रानी वीरमतीके दो सन्तान थीं। एक पुत्र था और एक कन्या थी । पुत्रका नाम चन्द्रभूति और कन्याका चन्द्रश्री था । चन्द्रश्री बड़ी सुन्दर थी । उसकी सुन्दरता देखते ही बनती थी ।
कौशल देश और कौशल ही शहरके राजा धर्मसिंह के साथ चन्द्रश्रीको शादी हुई थी। दोनों दम्पति सुखसे रहते थे । नाना प्रकार की भोगोपभोग वस्तुएँ सदा उनके लिये मौजूद रहती थीं। इतना होने पर भी राजाका धर्म पर पूर्ण विश्वास था, अगाध श्रद्धा थी । वे सदा दान, पूजा, व्रतादि धर्मकार्य करते थे ।
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