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आराधना कथाकोश
समझ हैं। वह अपने लिए भी बहुत पछताया कि हाय ! मैं कितना मुर्ख हूँ जो अब तक अपने हितको न शोध सका। मतलब यह कि संसारको दशासे उसे बड़ा वैराग्य हा और अन्त में वह सुखकी कारण जिन दीक्षा ले ही गया।
इसके बाद श्रीदत्त मुनिने बहुतसे देशों और नगरोंमें भ्रमण कर अनेक भव्य-जनों को सम्बोधा, उन्हें आत्महितकी ओर लगाया। घमते-फिरते वे एक बार अपने शहरकी ओर आ गये। समय जाड़े का था। एक दिन श्रीदत्त मुनि शहर बाहर कायोत्सर्ग ध्यान कर रहे थे, उन्हें ध्यानमें खड़ा देख उस तोतेके जीवको, जिसे श्रीदत्तने गरदन मरोड़ मार डाला था और जो मरकर व्यन्तुर हआ था, अपने बैरी पर बड़ा क्रोध आया। उस बैरका बदला लेनेके अभिप्रायसे उसने मुनि पर बड़ा उपद्रव किया। एक तो वैसे ही जाड़ेका समय, उस पर इसने बड़ी जोरको ठंडी गार हवा चलाई, पानी बरसाया, ओले गिराये । मतलब यह कि उसने अपना बदला चुकानेमें कोई बात उठा न रखकर मनिको बहत ही कष्ट दिया । श्रीदत्त मुनिराजने इन सब कष्टोंको बड़ी शान्ति और धीरजके साथ सहा । व्यन्तर इनका पुरा दुश्मन था, पर तब भी इन्होंने उस पर रंच मात्र भी क्रोध न किया। वे बैरी और हितको सदा समान भावसे देखते थे। अन्तमें शुक्लध्यान द्वारा केवलज्ञान प्राप्त कर वे कभी नाश न होनेवाले मोक्ष स्थानको चले गये ।
जितशत्रु राजाके पुत्र श्रोदत्त मुनि देवकृत कष्टोंको बड़ी शान्तिके साथ सहकर अन्तमें शुक्लध्यान द्वारा सब कर्मोंका नाश कर मोक्ष गये। वे केवलज्ञानी भगवान् मझे अपनी भक्ति प्रदान करें, जिससे मुझे भी शान्ति प्राप्त हो।
६५. वृषभसेनकी कथा जिन्हें सारा संसार बड़े आनन्दके साथ सिर झुकाता है, उन जिन भगवान्को नमस्कार कर वृषभसेनका चरित लिखा जाता है।
उज्जैनके राजा प्रद्योत एक दिन उन्मत्त हाथी पर बैठकर हाथी पक.
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