________________
२७८
आराधना कथाकोश ६१. भद्रबाहु मुनिराजकी कथा संसारका कल्याण करनेवाले और देवों द्वारा नमस्कार किये गये श्रोजिनेन्द्र भगवान्को नमस्कार कर पंचम श्रुतकेवली श्रीभद्रबाहु मुनिराजकी कथा लिखी जाती है, जो कथा सबका हित करनेवाली है।।
पुण्ड्रवर्द्धन देशके कोटोपुर नामक नगरके राजा पद्मरथके समयमें वहाँ सोमशर्मा नामका एक पुरोहित ब्राह्मण हो गया है। इसको स्त्रीका नाम श्रीदेवी था। कथा-नायक भद्रबाह इसीके लड़के थे। भद्रबाह बचपनसे ही शान्त और गम्भीर प्रकृतिके थे। उनके भव्य चेहरेको देखनेसे यह झटसे कल्पना होने लगतो थी कि ये आगे चलकर कोई बड़े भारी प्रसिद्ध महापुरुष होंगे। क्योंकि यह कहावत बिलकूल सच्ची है कि "पूतके पग पालने. में हो नजर आ जाते हैं।” अस्तु ।
जब भद्रबाहु आठ वर्षके हुए और इनका यज्ञोपवीत और मौजीबन्धन हो चुका था तब एक दिनको बात है कि ये अपने साथी बालकों के साथ खेल रहे थे। खेल था गोलियोंका। सब अपनी-अपनी हुशियारो
और हाथोंकी सफाई गोलियोंको एक पर एक रख कर दिखला रहे थे। किसीने दो, किसीने चार, किसीने छह और किसी-किसीने अपनी हुशियारीसे आठ गोलियां तक ऊपर तले चढ़ा दीं। पर हमारे कथानायक भद्रबाहु इन सबसे बढ़कर निकले। इन्होंने एक साथ कोई चौदह गोलियाँ तले ऊपर चढ़ा दीं। सब बालक देखकर दंग रह गये। इसी समय एक घटना हई। वह यह कि-श्री वर्द्धमान भगवानको निर्वाण लाभ किये बाद होनेवाले पाँच श्रुतकेवलियोंमें चौदह महापूर्वके जाननेवाले चौथे श्रतकेवली श्री गोवर्द्धनाचार्य गिरनारको यात्राको जाते हुए इस ओर आ गये। उन्होंने भद्रबाहुके खेलकी इस चकित करनेवालो चतुरताको देखकर निमित्तज्ञानसे समझ लिया कि पाँचवें होनेवाले श्रुतकेवली भद्रबाहु ये ही होने चाहिए। भद्रबाहुसे उनका नाम बगैरह जानने पर उन्हें और भी दृढ़ निश्चय हो गया। वे भद्रबाहुको साथ लिए उसके घर पर गये । सोमशर्मास उन्होंने भद्रबाहुको पढ़ाने के लिए मांगा। सोमशर्माने कुछ आनाकानी न कर अपने लड़केको आचार्य महाराजके सुपुर्द कर दिया । आचार्यने भद्रबाहको अपने स्थान पर लाकर खूब पढ़ाया और सब विषयोंमें उसे आदर्श विद्वान् बना दिया। जब आचार्यने देखा कि भद्रबाहु अच्छा विद्वान् हो गया तब उन्होंने उसे वापिस घर लौटा दिया । इसलिए की कहीं सोमशर्मा यह न समझ ले कि मेरे लड़केको बहका कर इन्होंने
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org