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आराधना कथाकोश
नक मगरमच्छ न थे । समुद्र में अमृत रहता है और इनमें जिनेन्द्र भगवान्का वचनमयी निर्मल अमृत समाया हुआ था । और समुद्रमें अनेक तरहकी बिकने योग्य वस्तुएँ रहती हैं, ये भी व्रतों द्वारा उत्पन्न होनेवाली पुण्यरूपी विक्रेय वस्तुको धारण किये थे ।
५६. गजकुमार मुनिकी कथा
जिन्होंने अपने गुणोंसे संसार में प्रसिद्ध हुए और सब कामों को करके सिद्धि, कृत्यकृत्यता लाभ की है, उन जिन भगवान्को नमस्कार कर गजकुमार मुनिकी कथा लिखी जाती है ।
नेमिनाथ भगवान् के जन्मसे पवित्र हुई प्रसिद्ध द्वारकाके अर्धचक्री बासुदेवकी रानी गन्धर्वसेनासे गजकुमारका जन्म हुआ था । गजकुमार बड़ा वीर था । उसके प्रतापको सुनकर ही शत्रुओंकी विस्तृत मानरूपी बेल भस्म हो जाती थी ।
पोदनपुर के राजा अपराजितने तब बड़ा सिर उठा रक्खा था । वासुदेवने उसे अपने काबू में लानेके लिये अनेक यत्न किये, पर वह किसी तरह इनके हाथ न पड़ा । तब इन्होंने शहरमें यह डोंडी पिटवाई कि जो मेरे शत्रु अपराजितको पकड़ लाकर मेरे सामने उपस्थित करेगा, उसे उसका, मन चाहा वर मिलेगा । गजकुमार डौंडो सुनकर पिताने पास गया और हाथ जोड़कर उसने स्वयं अपराजित पर चढ़ाई करनेकी प्रार्थना की। उसकी प्रार्थना मंजूर हुई । वह सेना लेकर अपराजित पर जा चढ़ा। दोनों ओरसे घमासान युद्ध हुआ । अन्तमें विजयलक्ष्मीने गजकुमारका साथ दिया । अपराजितको पकड़ लाकर उसने पिताके सामने उपस्थित कर दिया | गजकुमारकी इस वीरताको देखकर वासुदेव बहुत खुश हुए । उन्होंने उसकी इच्छानुसार वर देकर उसे सन्तुष्ट किया ।
ऐसे बहुत कम अच्छे पुरुष निकलते हैं जो मनचाहा वर लाभकर सदाचारी और सन्तोषी बने रहें । गजकुमारकी भी यही दशा हुई । उसने मनचाहा वह पिताजीसे लाभ कर अन्यायकी ओर कदम बढ़ाया। वह पापी
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