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आराधना कथाकोश
कर्मचारियों को उसने धनका लोभ देकर उभारा, प्रजामेंसे भी बहुतों को उल्टी-सीधी सुझाकर बहकाया । गन्धमित्रको इसमें सफलता प्राप्त हुई । उसने मौका पाकर बड़े भाई जयसेनको सिंहासनसे उतार राज्य बाहर कर दिया और आप राजा बन बैठा । राजवैभव सचमुच ही महापापका कारण है । देखिए न, इस राजवैभव के लोभमें पड़कर मूर्खजन अपने सगे भाईकी जान तक लेने की कोशिश में रहते हैं ।
राज्य-भ्रष्ट जयसेनको अपने भाईके इस अन्यायसे बड़ा दुःख हुआ । . इसका उसे ठीक बदला मिले, इस उपायमें अब वह भी लगा । प्रतिहिंसा से अपने कर्त्तव्यको वह भूल बैठा । उस दिनका रास्ता वह बड़ी उत्सुकता से देखने लगा जिस दिन गन्धमित्रको वह ठार मारकर अपने हृदयको सन्तुष्ट करे ।
गन्धमित्र लम्पटी तो था ही, सो वह रोज-रोज अपनी स्त्रियोंको साथ लिए जाकर सरयू नदी में उनके साथ जलक्रीड़ा हँसी, दिल्लगी किया करता था । जयसेनने इस मौकेको अपना बदला चुकाने के लिए बहुत हो अच्छा समझा । एक दिन उसने जहरके पुट दिये अनेक प्रकारके अच्छे-अच्छे मनोहर फलोंको ऊपरकी ओरसे नदीमें बहा दिया । फूल गन्धमित्रके पास होकर बहे जा रहे थे । गन्धमित्र उन्हें देखते ही उनके लेनेके लिए झपटा | कुछ फूलों को हाथ में ले वह सूंघने लगा । फूलोंके विषका उस पर बहुत जल्दी असर हुआ और देखते-देखते वह चल बसा। मरकर गन्धमित्र घ्राणेन्द्रिय विषयकी अत्यन्त लालसासे नरक गया। सो ठोक है, इंद्रियोंके अधीन हुए लोगों का नाश होता ही है ।
देखिये, गन्धमित्र केवल एक विषयका सेवन कर नरकमें गया, जो कि अनन्त दुःखों का स्थान है । तब जो लोग पाँचों इन्द्रियोंके विषयोंका सेवन करनेवाले हैं, वे क्या नरकोंमें न जायेंगे ? अवश्य जायगे । इसलिए जिन बुद्धिमानों को दुःख सहना अच्छा नहीं लगता या वे दुःखोंको चाहते ही नहीं, तो उन्हें विषयोंकी ओरसे अपने मनको खींचकर जिनधर्मकी ओर लगाना चाहिये ।
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