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लुब्धक सेठकी कथा
२०९ पत्थर लेकर उससे अपने दोनों पाँवोंको तोड़ लिया । मृत्यु उसके सिर पर खड़ी ही थी । वह लोभो आर्त्तध्यान, बुरे भावोंसे मरकर नरक गया । यह कथा शिक्षा देती है जो समझदार हैं उन्हें चाहिये कि वे अनोतिके कारण और पापको बढ़ानेवाले इस लोभका दूर हीसे छोड़ने का यत्न करें ।
वे कर्मों को जीतनेवाले जिन भगवान् संसारमें सदा काल रहें जो संसार के पदार्थों को दिखलानेके लिये दोपकके समान हैं, सब दोषोंसे रहित हैं, भव्य-जनों को स्वर्गमोक्षका सुख देनेवाले हैं, जिनके वचन अत्यन्त ही निर्मल या निर्दोष हैं, जो गुणोंके समुद्र हैं, देवों द्वारा पूज्य हैं और सत्पुरुषों के लिए ज्ञानके समुद्र हैं ।
४३. लुब्धक सेठकी कथा
केवलज्ञानकी शोभाको प्राप्त हुए और तीनों जगत् के गुरु ऐसे जिन भगवान्को नमस्कार कर लुब्धक सेठकी कथा लिखी जाती है ।
राजा अभयवाहन चम्पापुरीके राजा हैं । इनकी रानी पुण्डरीका है । नेत्र इसके ठीक पुण्डरीक कमल जैसे हैं । चम्पापुरीमें लुब्धक नामका एक सेठ रहता है । इसकी स्त्रीका नाम नागवसु है। लुब्धकके दो पुत्र हैं । इनके नाम गरुड़दत्त और नागदत्त हैं। दोनों भाई सदा हँस-मुख रहते हैं ।
लुब्धके पास बहुत धन था । उसने बहुत कुछ खर्च करके यक्ष, पक्षो, हाथी, ऊँट, घोड़ा, सिंह, हरिण आदि पशुओंकी एक-एक जोड़ी सोने की बनवाई थी । इनके सींग, पूँछ, खुर आदिमें अच्छे-अच्छे बहुमूल्य होरा, मोती, माणिक आदि रत्नोंको जड़ाकर लुब्धकने देखनेवालोंके लिए एक नया ही आविष्कार कर दिया था। जो इन जोड़ियोंको देखता वह बहुत खुश होता और लुब्धककी तारीफ किये बिना नहीं रहता । स्वयं लुब्धक भी अपनी इस जगमगाती प्रदर्शनीको देखकर अपनेको बड़ा धन्य मानता था । इसके सिवा लुब्धकको थोड़ा-सा दुःख इस बातका था कि उसने एक बेलकी जोड़ी बनवाना शुरू की थी और एक बैल बन भी चुका था, पर फिर सोना न रहनेके कारण वह दूसरा बैल नहीं बनवा सका । बस,
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