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धनके लोभसे भ्रममें पड़े कुबेरदत्तकी कथा २०१ जमीन खोद कर देखा तो वहाँ घड़ा नहीं। घड़ेको एकाएक गायब हो जानेका उसे बड़ा अचंभा हुआ और साथ ही उसका मन व्याकुल भी हुआ। उसने सोचा कि घड़ेका हाल केवल मुनि ही जानते थे, फिर बड़े अचंभेकी बात है कि उनके रहते यहाँसे घड़ा गायब हो जाय ? उसे घड़ा गायब करनेका मुनिपर कुछ सन्देह हुआ। तब वह मुनिके पास गया और उनसे उसने प्रार्थना की कि प्रभो, आप पर मेरा बड़ा ही प्रेम है, आप जबसे चले आये हैं. तबसे मुझे सुहाता ही नहीं, इसलिए चलकर आप कुछ दिनों तक और वहीं ठहरें तो बड़ी कृपा हो। इस प्रकार मायाचारोसे जिनदत्त मुनिराजको पीछा अपने मन्दिर पर लौटा लाया। इसके बाद उसने कहा, स्वामी, कोई ऐसी धर्म-कथा सुनाइए, जिससे मनोरंजन हो । तब मुनि बोले-हम तो रोज ही सुनाया करते हैं, आज तुम ही कोई ऐसी कथा कहो। तुम्हें इतने दिन शास्त्र पढ़ते हो गये, देखें तुम्हें उनका सार कैसा याद रहता है ? तब जिनदत्त अपने भीतरी कपट-भावों को प्रकट करनेके लिये एक ऐसी ही कथा सुनाने लगा । वह बोला___ "एक दिन पद्मरथपुरके राजा वसुपालने अयोध्याके महाराज जितशत्रुके पास किसी कामके लिए अपना एक दूत भेजा। एक तो गर्मीका समय और ऊपरसे चलनेकी थकावट सो इसे बड़े जोरकी प्यास लग आई। पानी इसे कहीं नहीं मिला । आते-आते यह एक घनी बनीमें आकर वृक्षके नीचे गिर पड़ा। इसके प्राण कण्ठगत हो गये । इसको यह दशा देखकर एक बन्दर दौड़ा-दौड़ा तालाब पर गया और उसमें डूबकर यह उस वृक्षके नीचे पड़े पथिकके पास आया । आते ही इसने अपने शरीरको उस पर झिड़का दिया। जब जल उस पर गिरा और उसकी आँखें खुली तब बन्दर आगे होकर उसे इशारेसे तालाबके पास ले गया । जल पीकर इसे बहुत शान्ति मिली। अब इसे आगेके लिए जलकी चिन्ता हुई। पर इसके पास कोई बरतन वगैरह न होनेसे यह जल ले जा नहीं सकता था। तब इसे एक युक्ति सूझी। इसने उस बेचारे जीवदान देनेवाले बन्दरको बन्दूकसे मारकर उसके चमड़ेकी थेली बनाई और उसमें पानी भर कर चल दिया।" अच्छा प्रभो, अब आप बतलाइए कि उस नीच, निर्दयी, अधर्मीको अपने उपकारी बन्दरको मार डालना क्या उचित था ? मुनि बोले तुम ठीक कहते हो। उस दूतका यह अत्यन्त कृतघ्नता भरा नीच काम था। इसके बाद अपनेको निर्दोष सिद्ध करनेके लिए मुनिराजने भी एक कथा कहना आरम्भ को। वे कहने लगे
"कौशाम्बी में किसी समय एक शिवशर्मा ब्राह्मण रहता था। उसकी
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