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आराधना कथाकोश
पर विचार करनेका कोई अधिकार नहीं । हमारे पिताजी यदि इस बातको स्वीकार कर लें तो फिर हमें कोई उज़र नहीं रहेगा। कुलबालिकाओं का यह उत्तर देना उचित ही था । उनका उत्तर सुनकर मुनिने उन्हें उनके वस्त्र वगैरह दे दिये। उन बालिकाओंने घर पर आकर यह सब घटना अपने पिता से कह सुनाई । देवदारुने तब अपने एक विश्वस्त कर्मचारीको मुनिके पास कुछ बातें समझाकर भेजा । उसने जाकर देवदारुकी ओरसे कहा- आपकी इच्छा देवदारु महाराजको जान पड़ी। उसके उत्तर में उन्होंने यह कहा है कि हाँ मैं अपनी लड़कियोंको आपको अर्पण कर सकता हूँ, पर इस शर्त पर कि "आप विद्युज्जिह्वको मारकर मेरा राज्य पीछा मुझे दिलवा दें।" रुद्रने यह स्वीकार किया । सच है, कामी पुरुष कौन पाप नहीं करता । रुद्रको अपनी इच्छाके अनुकूल देख देवदारु उसे अपने घर पर लिवा लाया । और बहुत ठीक है, राज्य भ्रष्ट राजा राज्यप्राप्ति के लिये क्या काम नहीं करता ।
इसके बाद रुद्र विजयार्द्ध पर्वत पर गया और विद्याओंकी सहायता से उसने विद्युज्जिको मारकर उसी समय देवदारुको राज्य सिंहासन पर बैठा दिया। राज्यप्राप्ति के बाद ही देवदारुने भी अपनी प्रतिज्ञा पूरी की। अपनी सब लड़कियों का ब्याह आनन्द उत्सव के साथ उसने रुद्रसे कर दिया । इसके सिवा उसने और भी बहुतसी कन्याओंको उसके साथ ब्याह दिया । रुद्र तब बहुत ही कामी हो गया । उसके इस प्रकार तीव्र कामसेवनका नतीजा यह हुआ कि सैकड़ों बेचारी राजबालिकाएँ अकाल हीमें मर गईं। पर यह पापी तब भी सन्तुष्ट नहीं हुआ । इसने अबकी बार पार्वती के साथ ब्याह किया। उसके द्वारा इसकी कुछ तृप्ति जरूर हुई |
कामी होने के सिवा इसे अपनी विद्याओंका भी बड़ा घमंड हो गया था । इसने सब राजाओंको विद्याबलसे बड़ा कष्ट दे रक्खा था, बिना हो कारण यह सबको तंग किया करता था । और सच भी है दुष्ट से किसे शान्ति मिल सकती है । इसके द्वारा बहुत तंग आकर पार्वती के पिता तथा और भी बहुत से राजाओंने मिलकर इसे मार डालनेका विचार किया । पर इसके पास था विद्याओंका बल, सो उसके सामने होनेको किसीकी हिम्मत न पड़ती और पड़ती भी तो वे कुछ कर नहीं सकते थे। तब उन्होंने इस बातका शोध लगाया कि विद्याएँ इससे किस समय अलग रहती हैं। इस उपाय से उन्हें सफलता प्राप्त हुई। उन्हें यह ज्ञात हो गया कि कामसेवन के समय सब विद्याएँ रुद्रसे पृथक् हो जाती हैं । सो मीका
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