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आराधना कथाकोश
इससे संतोष नहीं हुआ । उसने कोई ऐसा ही छल-कपटकर नीलीके माथे व्यभिचार का दोष मढ़ दिया । सच है, सत्पुरुषों पर किसी प्रकारका ऐब लगा देने में पापियोंको तनिक भी भय नहीं रहता । बेचारी नीली अपने पर झूठ-मूठ महान् कलंक लगा सुनकर बड़ी दुखी हुई । उसे कलंकित होकर जीते रहने से मर जाना ही उत्तम जान पड़ा । वह उसी समय जिनमन्दिर में गई और भगवान् के सामने खड़ी होकर उसने प्रतिज्ञा की, कि में इस कलंक से मुक्त होकर ही भोजन करूँगी, इसके अतिरिक्त मुझे इस जीवन में अन्नपानीका त्याग है । इस प्रकार वह संन्यास लेकर भगवान् के सामने खड़ी हुई उनका ध्यान करने लगी । इस समय उसकी ध्यान मुद्रा देखने के योग्य थी । वह ऐसी जान पड़ती थी मानों सुमेरु पर्वतकी स्थिर और सुन्दर जैसी चूलिका हो । सच है, उत्तम पुरुषोंको सुख या दुःखमें जिनेन्द्र भगवान् ही शरण होते हैं, जो अनेक प्रकारको आपत्तियोंके नष्ट करनेवाले और इन्द्रादि देवों द्वारा पूज्य हैं ।
नीलकी इस प्रकार दृढ़ प्रतिज्ञा और उसके निर्दोष शीलके प्रभावसे पुरदेवताका आसन हिल गया । वह रातके समय नीलीके पास आई और बोली- सतियोंकी शिरोमणि, तुझे इस प्रकार निराहार रहकर प्राणोंको कष्टमें डालना उचित नहीं । सुन, में आज शहरके बड़े-बड़े प्रतिष्ठित पुरुषोंको तथा राजाको एक स्वप्न देकर शहर के सब दरवाजे बन्द कर दूँगी । वे तब खुलेंगे जब कि उन्हें कोई शहरको महासती अपने पाँवोंसे छूएगी। सो जब तुझे राजकर्मचारी यहाँसे उठाकर ले जायँ तब तू उनका स्पर्श करना | तेरे पाँवके लगते ही दरवाजे खुल जायँगे और तू कलंक मुक्त होगी । यह कहकर पुरदेवता चलो गई और सब दरवाजोंको बन्दकर उसने राजा वगैरहको स्वप्न दिया ।
सबेरा हुआ । कोई घूमने के लिए, कोई स्नान के लिए और कोई किसी और कामके लिए शहर बाहर जाने लगे । जाकर देखते हैं तो शहर बाहर होनेके सब दरवाजे बन्द हैं । सबको बड़ा आश्चर्य हुआ । बहुत कुछ कोशिशें की गईं; पर एक भी दरवाजा नहीं खुला। सारे शहर में शोर मच गया । बातकी बातमें राजाके पास खबर पहुँचो । इस खबर के पहुंचते ही राजाको रातमें आये हुए स्वप्न की याद हो उठी। उसी समय एक बड़ो भारी सभा बुलाई गई । राजाने सबको अपने स्वप्नका हाल कह सुनाया । शहरके कुछ प्रतिष्ठित पुरुषोंने भी अपनेको ऐसा ही स्वप्न आया बतलाया । आखिर सबकी सम्मतिसे स्वप्न के अनुसार दरवाजोंका खोलना निश्चित
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