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मृगसेन धोवरको कथा
१३५ अहो दुष्टस्य दुष्टत्वं लक्ष्यते केन वेगतः।
-ब्रह्म नेमिदत्त अर्थात्-दुष्टोंकी दुष्टताका पता जल्दीसे कोई नहीं पा सकता। पापी श्रीदत्तने पत्रमें लिखा"पुत्र महाबल,
जो तुम्हारे पास पत्र लेकर आ रहा है, वह अपने कुलका नाश करनेके लिए भयंकरतासे जलता हुआ मानों प्रलय कालकी अग्नि है, समर्थ होते ही यह अपना सर्वनाश कर देगा। इसलिए तुम्हें उचित है कि इसे गुप्तरीतिसे तलवार द्वारा वा मूसले से मार डालकर अपना कांटा साफ कर दो। काम बड़ी सावधानीसे हो, जिसे कोई जान न पावे ।"
पत्रको अच्छी तरह बन्द करके उसने कुमार धनकीत्तिको सौंप दिया। धनकीत्तिने उसे अपने गलेमें पड़े हुए हारसे बाँध लिया और सेठकी आज्ञा लेकर उसी समय वह वहाँसे निडर होकर चल दिया । वह धोरे-धीरे उज्जयिनीके उपवनमें आ पहुँचा । रास्ते में चलते-चलते वह थक गया था। इसलिए थकावट मिटानेके लिए वह वहीं एक वृक्षकी ठंडी छायामें सों गया। उसे वहाँ नींद आ गई। ___ इतने हीमें वहाँ एक अनंगसेना नामकी वेश्या फूल तोड़नेके लिए आई। वह बहुत सुन्दरी थी। अनेक तरहके मौलिक भूषण और वस्त्र वह पहरे थी। उससे उसको सुन्दरता भी बेहद बढ़ गई थी। वह अनेक विद्या, कलाओंकी जाननेवाली और बड़ी विनोदिनी थी। उसने धनकीत्तिको एक वृक्षके नीचे सोता देखा। पूर्वजन्ममें अपना उपकार करनेके कारणसे उसपर उसका बहुत प्रेम हुआ। उसके वश होकर ही उसे न जाने क्या बुद्धि उत्पन्न हुई जो उसने उसके गले में बँधे हुए श्रीदत्तके कागजको खोल लिया। पर जब उसने उसे बाँचा तो उसके आश्चर्यका कुछ ठिकाना न रहा । एक निर्दोष कुमारके लिए श्रीदत्तका ऐसा घोर पैशाचिक अत्याचारका हाल पढ़कर उसका हृदय कांप उठा। वह उसकी रक्षाके लिए घबरा उठी । वह भी थी बड़ी बुद्धिमती सो उसे झट एक युक्ति सझ गई। उसने उस लिखावट को बड़ी सावधानीसे मिटाकर उसकी जगह अपनी आँखोंमें अंजे हए काजलको पत्तोंके रससे गीली की हुई सलाईसे निकाल-निकाल कर उसके द्वारा लिख दिया कि
"प्रिये ! यदि तुम मुझे सच्चा अपना स्वामी समझती हो, और पुत्र
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