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आराधना कथाकोश
शिलापर ध्यान लगाये बैठे हुए थे। उन्हें देखकर गुवालेको बड़ी दया आई । वह यह विचार कर, कि अहा ! इनके पास कुछ वस्त्र नहीं है और जाड़ा इतने जोरका पड़ रहा है, तब भी ये इसी शिलापर बैठे हुए ही रात बिता डालेंगे, अपने घर गया और आधी रातके समय अपनी स्त्रीको साथ लिए पीछा मुनिराजके पास आया। मुनिराजको जिस अवस्था में बैठे हुए वह देख गया था, वे अब भी उसी तरह ध्यानस्थ बैठे हुए थे। उनका सारा शरीर ओससे भींग रहा था। उनकी यह हालत देखकर दयाबुद्धिसे उसने मुनिराजके शरीरपरसे ओसको साफ किया और सारी रात वह उनके पाँव दाबता रहा, सब तरह उनका वैयावृत्य करता रहा । सबेरा होते ही मुनिराजका ध्यान पूरा हुआ। उन्होंने आँख उठाकर देखा तो गुवालेको पास ही बैठा पाया। मुनिराजने गुवालेको निकटभव्य समझकर पंच नमस्कारमंत्रका उपदेश किया, जो कि स्वर्गमोक्षकी प्राप्तिका कारण है। इसके बाद मुनिराज भी पंचनमस्कारमंत्रका उच्चारण कर आकाशमें विहार कर गये ।
गुवालेकी धीरे-धीरे मंत्रपर बहुत श्रद्धा हो गई। वह किसी भी कामको जब करने लगता तो पहले ही नमस्कारमंत्रका स्मरण कर लिया करता था । एक दिन जब गुवाला मंत्र पढ़ रहा था, तब उसे उसके सेठने सुन लिया । वे मुस्कुराकर बोले-क्यों रे, तूने यह मंत्र कहासे उड़ाया ? गुवालेने पहलेकी सब बात अपने स्वामीसे कह दो । सेठने प्रसन्न होकर गुवालेसे कहा-भाई, क्या हुआ यदि तू छोटे भी कुलमें उत्पन्न हुआ ? पर आज तू कृतार्थ हुआ, जो तुझे त्रिलोकपूज्य मुनिराजके दर्शन हुए। सच बात है सत्पुरुष धर्मके बड़े प्रेमी हआ करते हैं।
एक दिन गुवाला भैंसें चरानेके लिए जंगलमें गया । समय वर्षाका था । नदी नाले सब पूर थे। उसको भैंसें चरनेके लिए नदो पार जाने लगीं। सो इन्हें लौटा लानेकी इच्छासे गुवाला भी उनके पोछे ही नदीमें कूद पड़ा। जहाँ वह कूदा वहीं एक नुकीला लकड़ा गड़ा हुआ था। सो उसके कूदते ही लकड़ेकी नोंक उसके पेट में जा घुसी। उससे उसका पेट फट गया। वह उसी समय मर गया। वह जिस समय नदीमें कूदा था, उस समय सदाके नियमानुसार पंचनमस्कारमंत्रका उच्चारण कर कूदा था । वह मरकर मंत्रके प्रभावसे वृषभदत्तके यहाँ पुत्र हुआ । वह जाता तो कहीं स्वर्गमें, पर उसने वृषभदत्तके यहीं उत्पन्न होने का निदान कर लिया था, इसलिए निदान उसकी ऊँची गतिका बाधक बन गया। उसका नाम रक्खा गया सुदर्शन । सुदर्शन बड़ा सुन्दर था। उसका जन्म मातापिताके
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