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________________ १०८ आराधना कथाकोश प्रियाके साथ सुख भोगता हुआ अपना समय आनन्दसे बिताने लगा' ।' नाथ ! उसी तरह ये साधु भी निरन्तर विष्णुलोक में रहकर सुख भोगें यह मेरी इच्छा थी; इसलिये मैंने वैसे किया था । महारानी चेलनीकी कथा सुनकर श्रेणिक उत्तर तो कुछ नहीं दे सके, पर वे उसपर बहुत गुस्सा हुए और उपयुक्त समय न देखकर वे अपने क्रोधको उस समय दबा भी गये । एक दिन श्रेणिक शिकार के लिये गये हुए थे । उन्होंने वनमें यशोधर मुनिराजको देखा । वे उस समय आतप योग धारण किये हुए थे । श्रेणिक उन्हें शिकार के लिये विघ्नरूप समझकर मारने का विचार किया और बड़े गुस्से में आकर अपने क्रूर शिकारी कुत्तों को उनपर छोड़ दिया । कुत्ते बड़ी निर्दयता के साथ मुनिके मारनेको झपटे। पर मुनिराजकी तपश्चर्याके प्रभावसे वे उन्हें कुछ कष्ट न पहुँचा सके । बल्कि उनकी प्रदक्षिणा देकर उनके पाँवों के पास खड़े रह गये । यह देख श्रेणिकको और भी क्रोध आया । उन्होंने क्रोधान्ध होकर मुनिपर शर चलाना आरम्भ किया । पर यह कैसा आश्चर्य जो शरोंके द्वारा उन्हें कुछ क्षति न पहुँच कर वे ऐसे जान पड़े मानो किसीने उनपर फूलोंकी वर्षा की है। सच बात यह है कि तपस्वियोंका प्रभाव कह कौन सकता है ? श्रेणिकने मुनि हिंसारूप तीव्र परिणामों द्वारा उस समय सातवें नरककी आयुका बन्ध किया, जिसकी स्थिति तेतीस सागर की है । इन सब अलौकिक घटनाओंको देखकर श्रेणिकका पत्थर के समान कठोर हृदय फूलसा कोमल हो गया। उनके हृदयकी सब दुष्टता निकलकर उसमें मुनिके प्रति पूज्यभाव पैदा हो गया । वे मुनिराजके पास गये और भक्ति से उन्होंने मुनिके चरणोंको नमस्कार किया । यशोधर मुनिराजने श्रेणिकके हितके लिये उपयुक्त समझकर उन्हें अहिंसामयी पवित्र जिनशासनका उपदेश दिया । उसका श्रेणिकके हृदयपर बहुत ही असर पड़ा । उनके परिणामों में विलक्षण परिवर्तन हुआ । उन्हें अपने कृतकर्मपर अत्यन्त पश्चात्ताप हुआ । मुनिराजके उपदेशानुसार उन्होंने सम्यक्त्व ग्रहण किया । उसके प्रभावसे, उन्होंने जो सातवें नर्ककी आयुका बन्ध किया था, वह उसी समय घटकर पहले नरकका रह गया, जहाँको स्थिति चौरासी हजार १. यह कथा जैन धर्मसे विरुद्ध है । जान पड़ता है चेलिनीरानीने अपनी बातको पुष्ट करनेके लिये अन्यमतके ग्रन्थोंका प्रमाण देकर इसे उद्धृत किया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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