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आराधना कथाकोश
क्या उस समय वे मुझे छोड़ देंगे ? कभी नहीं । इसलिये न तो मैं ही ऐसा कर सकता हूँ और न तुम्हें ही इस विषय में कुछ विशेष आग्रह करना उचित है। हाँ तुम कहो तो मैं तुम्हें कुछ खेल दिखा सकता हूँ ।
नागदत्त बोला- तुम्हें पिताजीकी ओरसे कुछ भय नहीं करना चाहिये । वे स्वयं अच्छी तरह जानते हैं कि मैं इस विषय में कितना विज्ञ हूँ और इसपर भी तुम्हें सन्तोष न हो तो आओ मैं पिताजीसे तुम्हें क्षमा करवाये देता हूँ । यह कहकर नागदत्त प्रियदत्तको पिताके पास ले गया और मारे अभिमानमें आकर बड़े आग्रहके साथ महाराजसे उसे अभय दिलवा दिया | नागधर्म कुछ तो नागदत्तका सर्पोंके साथ खेलना देख चुके थे और इस समय पुत्रका बहुत आग्रह था, इसलिये उन्होंने विशेष विचार न कर प्रियदत्तको अभय प्रदान कर दिया । नागदत्त बहुत प्रसन्न हुआ । उसने प्रियदत्तसे सर्पों को बाहर निकालनेके लिये कहा । प्रियदत्तने पहले एक साधारण सर्प निकाला । नागदत्त उसके साथ क्रीड़ा करने लगा और थोड़ी देर में उसे उसने पराजित कर दिया, निर्विष कर दिया । अब तो नागदत्तका साहस खूब बढ़ गया । उसने दूने अभिमानके साथ कहा कि तुम क्या ऐसे मुर्दे सर्पको निकालकर और मुझे शर्मिन्दा करते हो ? कोई अच्छा विषधर सर्प निकालो न ? जिससे मेरी शक्तिका तुम भी परिचय पा सको ।
प्रियधर्म बोला- आपका होश पूरा हुआ । आपने एक सर्पको हरा भी दिया है । अब आप अधिक आग्रह न करें तो अच्छा है । मेरे पास एक सर्प और है, पर वह बहुत जहरीला है, दैवयोगसे उसने काट खाया तो समझिये फिर उसका कुछ उपाय ही नहीं है । उसकी मृत्यु अवश्यंभावी है । इसलिये उसके लिये मुझे क्षमा कीजिये । उसने नागदत्तसे बहुत-बहुत प्रार्थना की पर नागदत्तने उसकी एक नहीं मानी । उलटा उसपर क्रोधित होकर वह बोला- तुम अभी नहीं जानते कि इस विषय में मेरा कितना प्रवेश है ? इसीलिये ऐसी डरपोकपने की बातें करते हो । पर मैंने ऐसे-ऐसे हजारों सर्पोंको जीत कर पराजित किया है । मेरे सामने यह बेचारा तुच्छ जीव कर ही क्या सकता है ? और फिर इसका डर तुम्हें या मुझ े ? वह काटेगा तो मुझ े ही न ? तुम मत घबराओ, उसके लिये मेरे पास बहुत से ऐसे साधन हैं, जिससे भयंकर से भयंकर सर्पका जहर भी क्षणमात्रमें उतर सकता है ।
प्रियधर्मने कहा-अच्छा यदि तुम्हारा अत्यन्त ही आग्रह है तो उससे मुझे कुछ हानि नहीं । इसके बाद उसने राजा आदिको साक्षीसे अपने
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