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७६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-कोमल शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. मृदुल (कोमल) २. मञ्जुल (सुन्दर-अच्छा)। कोरक शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. मृणाल (कमल नाल तन्तु। २. कक्कोल (गहुलाफल कर्पूर) और ३. मुकुल (कोरक कली)। मूल :
कोलं घोण्टाफले चव्ये मरिचे तोलके स्मृतम् । कोलः शनौ प्लवे चित्रे क्रोड-देशविशेषयोः ॥ ४०६ ॥ अङ्कपाली - वराहाऽस्त्रभेद जात्यन्तरेष्वपि ।
कोषोऽस्त्री चषके दिव्ये योनौ शब्दादि संग्रहे ॥ ४०७ ॥ हिन्दी टीका-नपंसक कोल शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. घोण्टाफल (सुपारी) २. चव्य (चाभ) ३. मरिच (कालीमरी) और ४. तोलक (माप विशेष)। पुल्लिग कोल शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं—१. शनि, २. प्लव (नौका), ३. चित्र, ४. क्रोड (गोद) ५. देश विशेष (आकोला)। कोल शब्द के और भी चार अर्थ होतेहैं- १. अङ्कपाली, २. वराह (सूगर) ३. अस्त्रभेद (अस्त्र विशेष) और ४. जात्यन्तर (भील कोल किरात) कोष शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक भी माना जाता है और उसके भी चार अर्थ होते हैं१. चषक (प्याला) २. दिव्य (अपूर्व वस्तु) ३. योनि (गर्भाशय) ४. शब्दादि संग्रह (डिक्शनरी-कोश) इस तरह कोष के चार अर्थ जानना।। मूल :
अण्डे खड्गपिधानेऽर्थसमूहे पात्रशिम्बयोः ।
जातीफले कुड्मले च भाण्डागारेऽपि कीर्तितः ॥ ४०८ ॥ हिन्दी टोका-कोष शब्द के और भी आठ अर्थ माने जाते हैं—१. अण्ड (अण्डा) २. खड्गपिधान (म्यान-तरकस) ३. अर्थ समूह, ४. पात्र (बर्तन विशेष) ५. शिम्ब (छिमी) ६. जातीफल (जायफर) ७. कुड्मल (कली) और ८. भाण्डागार (अन्नालय-कोष्ठागार) को भी कोष कहते हैं।
पनसादिफलस्यान्ते हिरण्ये धनसंहतौ । कौतुकं भोगसमये नर्म - गीतादिभोगयोः ॥ ४०६ ॥ हर्षे परम्परायात मंगलेपि कुतूहले ।
वैवाहिके हस्तसूत्रेऽभिलाषोत्सवयोरपि ॥ ४१० ॥ हिन्दी टीका-१. पनसादिफलस्यान्त (कटहल वगैरह फलों का अन्त भाग) तथा २. हिरण्य (सोना चांदी रूपा) और ३. धन संहति (धन समुदाय) को भी कोष शब्द से व्यवहार होता है। इस प्रकार कोष के पन्द्रह अर्थ जानना चाहिये । कौतुक शब्द नपुंसक है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. भोग समय (भोग) २. नर्म (केलिक्रीड़ा) ३. गीतादि भोग (नाच गान वगैरह) ४. हर्ष (आनन्द) ५. परम्परायातमंगल (कुल परम्परागत आनन्द भोग) और ६. मंगल (शुभ कार्य) के लिए भी कुतूहल का प्रयोग होता है । वैवाहिक हस्त सूत्र (विवाह काल में हाथ में बाँधे जाने वाला सूत) २. अभिलाष (मनोरथ) और ३. उत्सव (महोत्सव) को भी कुतूहल कहते हैं ।
कौपीनं कल्मषे चीरेऽकार्य - गुह्यप्रदेशयोः । कौमुदी चन्द्रिकायां स्यादुत्सवे कार्तिकोत्सवे ॥ ४११ ॥
मूल :
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