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३८६ | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - हलाहल शब्द
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मूल :
( हलवाह) और २. बलदेव ( बलराम ) । हला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ हैं - १' सखी ( सहेली ) २. जल ३. मद्य (शराब) और ४. पृथिवी । इस प्रकार हला शब्द के चार अर्थ समझना चाहिये । हलाहलो ब्रह्मसर्पेऽञ्जना - बुद्धविशेषयोः । आज्ञायामध्वरे होमे आह्वानेऽपि हवः पुमान् ॥२२५०॥ हस्तिमल्लः शंखनागे ऐरावत - गणेशयोः । हायनोऽग्निशिखा व्रीहिभेदयोर्वत्सरे पुमान् ॥२२५१॥
हिन्दी टीका - हलाहल शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. ब्रह्मसर्प (भूतसप्पा बगैरह ) २. अञ्जना (आँजन) और ३. बुद्ध-विशेष (भगवान बुद्धदेव विशेष ) । हव शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. आज्ञा २. अध्वर (यज्ञ) 3. होम (हवन) और ४. आह्वान (बुलाना या स्पर्द्धापूर्वक आह्वान करना) । हस्तिमल्ल शब्द के तीन अर्थ होते हैं -- १. शंखनाग (नाग विशेष) २. ऐरावत ( इन्द्र का हाथी ) और ३. गणेश । हायन शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. अग्निशिखा ( अग्नि ज्वाला) २. व्रीहिभेद (व्रीहि विशेष - सठिया वगैरह ) और ३. वत्सर ( वर्ष - संवत्सर) को भी हायन कहते हैं । हारो मुक्तावली युद्धे हरि सम्बन्धिनि त्रिषु । हारक: कितवे गद्यभेद विज्ञानभेदयोः || २२५२।। तस्करे भाजकाङ्क े च शाखोटेऽपि निगद्यते । हारीतः कैतवे पक्षिविशेष - मुनिभेदयोः ।। २२५३ ।।
मूल :
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हिन्दी टीका - हार शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. मुक्तावलि (मुक्ताहार) २. युद्ध (संग्राम) किन्तु ३. हरि सम्बन्धी अर्थ में हार शब्द त्रिलिंग माना जाता है । १. हारक शब्द के छह अर्थ माने जाते हैं - १. कितव ( धूर्त) २. गद्यभेद ( गद्य विशेष ) ३. विज्ञानभेद ( विज्ञान विशेष ) ४. तस्कर (चोर) ४. भाजक अङ्क ( भाग देने वाला अङ्क - संख्या) ५. शाखोट (सांखु शाख - शाल लकड़ी)
भी हार कहते हैं । हारीत शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं- १. कैतव ( छल कपट ) २. पक्षिविशेष (हात नाम का पक्षी विशेष) और ३ मुनिभेद ( मुनि विशेष - हारीत नाम का मुनि । मूल : हालो हले प्रलम्बघ्ने शालिवाहनभूपतौ ।
हिस्रा काकादनी नाडी - जटामांसी- गवेधुषु ॥२२५४॥ हितं त्रिषु गते मित्रे मंगले घृत - पथ्ययोः ।
हिमं स्यात्तुहिने रंगे पद्मकाष्ठे च मौक्तिके ॥२२५५॥
हिन्दी टीका - हाल शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. हल, २. प्रलम्बघ्न (बलराम) और ३. शालिवाहनभूपति (शालिवाहन नाम का राजा) । हिंस्रा शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. काकादनी (काकमाची) २. नाडी ( धमनी, नस) २. जटामांसी (जटामांसी नाम का औषधि विशेष) और ४. गवेधु ( मुनियों का अन्न विशेष) । हित शब्द त्रिलिंग माना जाता है और उसके पाँच अर्थ होते हैं -- १. गत ( गया हुआ ) २. मित्र, ३. मंगल (कल्याण) ४. घृत (घो) और ५. पथ्य । हिम शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ बतलाये गये हैं - १. तुहिन (बर्फ-पाला तुषार) २. रंग (रांगा - कलई) ३. पद्मकाष्ठ (काष्ठ विशेष ) तथा ४. मौक्तिक (मुक्तामणि या मोती वगैरह ) इस प्रकार हिम शब्द के चार अर्थ समझने चाहिए ।
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