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नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - सूक्ष्म शब्द | ३८३
हिन्दी टीका - नपुंसक सूक्ष्म शब्द के दो अर्थ माने गये हैं - १. कैतव ( छल कपट ) और २. अध्यात्म (आत्म विषयक ज्ञान वगैरह ) । पुल्लिंग सूक्ष्म शब्द के भी दो अर्थ होते हैं - १. अणु (परमाणु) और २. कतकद्र म (कतक का वृक्ष - रीठा का वृक्ष) । वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) । सृष्ट शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. व्यक्त (परित्यक्त) २. निर्मित, ३. निश्चित और ४ युत (युक्त) । सेचन शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. क्षरण ( झरना) २. सेक (सिञ्चन करना सीचना) और ३. नौकायाः सेक भाजन (नौका के सिञ्चन का पात्र) । सौरिभ शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. महिष (भैंस) और २ स्वर्ग । नपुंसक सोम शब्द के भी दो अर्थ होते हैं - १. स्वर्ग और २. काञ्जिक ( कांजी) ।
मूल :
सोमश्चन्द्रे कुबेरे च कर्पूरे मारुते यमे ।
वसुभेदे शिवे नीरे कीशे सोमलतौषधौ ॥ २२३२॥ सौगन्धिकं स्यात् कह्लारे पद्मरागे च कत्तृणे ।
नीलोत्पले पुमोंस्तु स्यात् सुगन्ध व्यवहारिणी ॥२२३३॥
हिन्दी टीका - सोम शब्द पुल्लिंग है और उसके दस अर्थ बतलाये गये हैं - १. चन्द्र (चन्द्रमा) २. कुबेर, ३. कर्पूर, ४. मारुत (पवन) ५. यम (धर्मराज) और ६. वसुभेद (वसु विशेष) ७. शिव ( भगवान् शंकर) ८. नीर (पानी) ६. कीश (बन्दर) और १०. सौमलतौषधि ( सोमलता नाम का औषधि विशेष ) । नपुंसक सौगन्धिक शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. कलार (सफेद कमल) और २. पद्मराग (पद्मराग नाम का मणि विशेष ) और ३. कत्तृण ( खराब घास) किन्तु सौगन्धिक शब्द ३. नीलोत्पल (नीलकमल ) अर्थ में और ४. सुगन्ध व्यवहारी (सुगन्ध द्रव्य विशेष ) अर्थ में पुल्लिंग माना गया है ।
मूल :
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सौधोऽस्त्री राजसदने सुधा सम्बन्धिनि त्रिषु । सौभाग्यं टंकणे योगभेद - सिन्दूरयोरपि ॥ २२३४ ॥
सौम्यो बुधग्रहे विप्रे सौम्यं कृच्छ्रव्रतेऽपि च । सौरभ्यं स्याद् मनोज्ञत्वे सौगन्ध्ये गुण गौरवे ॥२२३५||
हिन्दी टीका - पुल्लिंग तथा नपुंसक सौध महल) होता है और २. सुधा सम्बन्धी (चूना से पोत है । सौभाग्य शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं- टंकण ३. सिन्दूर (कुकुम) को भी सौभाग्य कहते हैं । पुल्लिंग सौम्य शब्द के दो अर्थ माने गये हैं- १. बुधग्रह और २. विप्र (ब्राह्मण) नपुंसक सौम्य शब्द को अर्थ २. कृच्छ्रव्रत ( चान्द्रायण व्रत वर्गरह) होता है । सौरभ्य शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं- १. मनोज्ञत्व (मनोज्ञता रमणीयता) और २. सौगन्ध्य सुगन्धता, सौरभ ) और ३. गुण-गौरव (गुणगरिष्ठता) को भी सौरभ्य शब्द से व्यवहार किया जाता है ।
मूल :
शब्द का अर्थ - १. राजसदन ( राजभवन या राजकिया हुआ) अर्थ में सौध शब्द त्रिलिंग माना गया (टांकण ) और २. योगभेद (योग विशेष) और
सौरभं कुंकुमे बोले सदुगन्धेऽपि निगद्यते ।
स्कन्धः काये समूहेंऽशे प्रकाण्डे नृपतौ रणे ॥२२३६॥ स्तननं कुन्थिते मेघगर्जित-ध्वनि मात्रयोः । स्तनयित्नुः पुमान् मेघे मुस्तके मृत्युरोगयोः ॥२२३७॥
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