SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 390
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नानार्थोदयसागर कोष ः हिन्दी टीका सहित-सरक शब्द | ३७१ सर शब्द तथा सरस शब्द के दो अर्थ होते हैं- १. तडाग (तालाब) और २. सलिल (पानी)। पुल्लिग तथा नपुंसक सरक शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१. शीधुपान (शराब पीना) और २. शीधुभाजन (शराब का पात्र) तथा ३. अच्छिन्नाध्वग पंक्ति (राहगीर की लगातार पंक्ति) एवं ४. मद्यपरिपेषण (शराब का परिवेषण परोसना) इस प्रकार सरक शब्द का चार अर्थ समझना चाहिये । मूल : त्रिष्वसौ गतिशीले च क्लीवमभ्र सरोवरे । सरणिः स्त्री प्रसारिण्यां पंक्तौ मार्गेऽपि चेष्यते ॥२१५६॥ सरण्डः सरटे धूर्ते कामुके भूषणे खगे। सरण्युर्ना जले वायौ मेघे बह्नि-वसन्तयोः ॥२१५७॥ हिन्दी टीका-१. गतिशील (गमनशील) अर्थ में सरक शब्द त्रिलिंग माना जाता है और २. अभ्र (मेघ) ३. सरोवर (तालाब) अर्थ में सरक शब्द नपुंसक माना गया है। सरणि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. प्रसारिणी (आकाश बेल-बंबर) २. पंक्ति (कतार लाइन) और ३. मार्ग (रास्ता) । सरण्ड शब्द के पांच अर्थ माने जाते हैं --१. सरट (गिरगिट) २. धूर्त (ठग, वञ्चक) ३. कामुक (विषय भोग लम्पट) ४. भूषण (अलंकरण) और ५. खग (पक्षी)। सरण्यु शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी पाँच अर्थ माने जाते हैं – १. जल (पानी) २. वायु (पवन) ३. मेघ (बादल) ४. बह्नि (अग्नि) और ५. वसन्त ऋतु को भी सरण्यु कहते हैं इस प्रकार सरण्यु शब्द के पाँच अर्थ जानना। मूल : सरल: पूतिकाष्ठे स्यात् बुद्ध वैश्वानरे पुमान् । वाच्यलिङ्गस्त्वसौ प्रोक्त उदारेऽकुटिलेऽपि च ॥२१५८।। सरस्वती स्याद् भारत्यां दुर्गायां सरिदन्तरे । मनुपत्न्यां सरिभेदे बुद्धशक्त्यन्तरे गवि ॥२१५६॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग सरल शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१, पूतिकाष्ठ (देवदारु वृक्ष) २. बुद्ध (भगवान् बुद्ध) और ३. वैश्वानर (अग्नि) किन्तु ४. उदार और ५. अकुटिल (सरल सीधा) अर्थ में सरल शब्द वायलिंग (विशेष्यनिघ्न) माना गया है। सरस्वती शब्द के सात अर्थ माने जाते हैं- १. भारती, २. दुर्गा, ३. सरिदन्तर (सरिद् विशेष-नदी विशेष) ४. मनुपत्नी (मनु की पत्नी) और ५. सरिभेद (सरिद् विशेष सरस्वती नदी) और ६. बुद्ध शक्त्यान्तर (भगवान् बुद्ध की शक्ति विशेष) और ७. गौ (गाय) को भी सरस्वती कहते हैं। ज्योतिष्मती-सोमलता-नदीमात्रेषु वाचि च। सरस्वान् ना नदे सिन्धौ रसिके त्वभिधेयवत् ।।२१६०॥ सरोजिनी पद्मखण्डे कमले कमलाकरे । सर्गः स्यात् निश्चयेऽध्याये स्वभावे सृष्टि-मोहयोः ॥२१६१॥ हिन्दी टोका-सरस्वती शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. ज्योतिष्मती (माल कांगनी नाम की लता विशेष) और २. सोमलता तथा ३. नदीमात्र एवं ४. वाक् (वाणी) को भी सरस्वती कहते हैं । सरस्वान् शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. नद (बड़ी नदी या झील) तथा मूल : www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy