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________________ मूल : मूल : ३० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित--पुण्डरीक शब्द कमल) २. श्वेतच्छत्र (सफेद छाता) और ३. अगदान्तर (अन्य रोग नहीं नीरोग) इस प्रकार वर्तक शब्द के दो और पुण्डरीक शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए। पुण्डरीको गणधरे सहकारे गजज्वरे । कोषकारान्तरे व्याघ्र राजिले दिग्गजान्तरे ।। ६६ ।। कमण्डलौ कुष्ठभेदे तरौ दमनकाभिधे । शालावृकः शृगाले स्याद् वानरे कुक्कुरेपि च ॥१०॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग पुण्डरीक शब्द के दस अर्थ होते हैं-१. गणधर (गौतम वगैरह) २, सहकार (आम का विशेष वृक्ष) ३. गजज्वर (हाथी का विशेष बुखार) ४. कोषकारान्तर (अन्य कोषकार विशेष) ५. ध्याघ्र (बाघ) ६. राजिल (गनगुआरि साँप विषरहित दुमुखी सांप) ७. दिग्गजान्तर (दिग्गज हाथी विशेष) इसी प्रकार पुल्लिग पुण्डरोक शब्द के और भी तीन अर्थ हैं जैसे-८. कमण्डलु (पात्र विशेष) ६ कुष्टभेद (सफेद कुष्ठ रोग) और १० दमनक नाम का तरु (वृक्ष विशेष) इस तरह पुण्डरीक शब्द के कुल मिलाकर तेरह अर्थ जानना । शालावृक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ हैं - १ शृगाल (सियार-गीदड़) २. वानर (बन्दर) और ३. कुक्कुर (कुत्ता) भी। अलीकमप्रियेऽसत्ये स्वर्गे भाले नपुंसकम् । व्यलीकं पीडनेऽकार्ये वैलक्ष्याप्रिययोरपि ॥१०१॥ निष्कः पले च दीनारे वक्षःस्थलविभूषणे । अष्टाधिकशते स्वर्णकर्षाणां स्वर्णमात्रके ॥१०२।। हिन्दी टीका- अलीक शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं ---१. अप्रिय (कटु खराब) २. असत्य (झूठ) ३. स्वर्ग, ४. भाल (ललाट मस्तक)। इस तरह अलोक शब्द के चार अर्थ समझने चाहिए। ध्यलोक शब्द भी नपुंसक ही माना जाता है और उसके भी चार अर्थ होते हैं -१. पीड़न (सताना) २. अकार्य (अनुचित कार्य, नहीं करने लायक) ३. वैलक्ष्य (निर्लज्जता) ४. अप्रिय (बुरा) भी। निष्क शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं -१. पल (चार तोला का माप विशेष) २. दीनार (असर्फी, लाल) ३. वक्षस्थलस्य आभूषणं (छाती पर का अलंकार विशेष हार मोहर वगैरह) ४. स्वर्णकर्षाणाम अष्टाधिकशतम (१०८ असर्फी) और ५. स्वर्णमात्र (सोना मात्र को भी) निष्क कहते हैं। इस प्रकार निष्क शब्द के पाँच अर्थ जानना। मूल : कल्को बिभीतके दम्भे पापे विट किट्टयोरपि । आरं मुण्डायसे कोणे पित्तल-प्रान्तभागयोः ॥१०३॥ हिन्दी टीका-कल्क शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके भी पांच अर्थ होते हैं१. बिभीतक (बहेड़ा) २. दम्भ (छल आडम्बर) ३. पाप, ४. विट् (विष्ठा) ५. किट्ट (काट जंग) नपुंसक । आर शब्द के चार अर्थ होते हैं -१. मुण्डायस (गोलाकार लोहा) २. कोण, ३. पित्तल और ४. प्रान्तभाग। इस प्रकार कल्क शब्द के पाँच और नपुंसक आर शब्द के चार अर्थ हुए। मूल : आरः कुजे वृक्षभेदे पित्तले च शनि ग्रहे । आरम्भ - उद्यमे दर्षे वध - आद्यकृतावपि ॥१०४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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