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________________ ३६८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-समुद्रारु शब्द मूल : कुम्भीरे सेतु बन्धे च समुद्रारुस्तिमिङ्गिले । गविते पण्डितम्मन्ये समुद्भूतोद्ध बन्धयोः ॥२१३६।। हिन्दी टोका-समुद्रारु शब्द के सात अर्थ माने जाते हैं -१. कुम्भीर (नक्रग्राह) २. सेतुबन्ध (सेतु बाँध) ३. तिमिगिल (मछली विशेष ४. गर्वित (घमण्डी) ५. पण्डितम्मन्य (अपने को पण्डित मानने वाला) और ६ समुद्भूत (उत्पन्न) और ७. ऊर्ध्वबन्ध (ऊपर बन्धन)। मूल : प्रभौं च वाच्यवल्लिगः समुन्नद्ध उदाहितः। समूढ़ो वाच्यवद् भुग्ने सद्योजाते विवाहिते ॥२१३७॥ दमिते मूढसहिते शोधिते चानुपप्लुते । । समुह्यः पुंसि यज्ञाग्नौ सम्यगृहोचिते त्रिषु ॥२१३८।। सम्पत् स्त्रियां गुणोत्कर्षे विभवोत्कर्ष-हारयो । सम्पन्नस्त्रिषु सम्पत्तिशालि शोधितयोः स्मृतः ॥२१३६।। हिन्दी टीका-१. प्रभु (स्वामी) अर्थ में समुन्नद्ध शब्द वाच्यवलिंग (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है । समूढ शब्द–१. भुग्न (टेढ़ा) २. सद्योजात (तुरत उत्पन्न) और ३. विवाहित अर्थ में वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) कहलाता है । समूढ शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. दमित (वश में किया हुआ) २. मूढसहित ३. शोधित (परिमार्जित) तथा ४. अनुपप्लुत (उपद्रव रहित)। समुह्य शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-. यज्ञाग्नि (यज्ञ की अग्नि) (अच्छी तरह ऊह-उचित तर्क वितर्क करने योग्य) अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है। सम्पत् शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. गुणोत्कर्ष (गुणों का उत्कर्ष उन्नति) २. विभवोत्कर्ष (विभव-धन का उत्कर्ष-उन्नति) और ३. हार (मुक्ताहार वगैरह)। सम्पन्न शब्द-१. सम्पत्तिशाली और २. शोधित (परिमार्जित) अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है। मूल : सम्परायस्तु संग्राम आपदुत्तरकालयोः । सम्पर्कः पुंसि विज्ञ यः संसर्गे मेलके रतौ ॥२१४०॥ सम्पाको लम्पटे धृष्टे तर्ककेऽल्पे च वाच्यवत् । सम्प्रयोगस्तु सम्बन्धे मैथुने कार्मणेऽथिते ॥२१४१॥ हिन्दी टीका-सम्पराय शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. सग्राम (युद्ध) २. आपत् (विपत्ति) और ३. उत्तरकाल (भविष्य काल)। सम्पर्क शब्द भी पुल्लिग है और उसके भो तीन अर्थ माने गये हैं-१. संसर्ग (सम्बन्ध) २. मेलक (मिलाने वाला) और ३. रति (मैथुन)। सम्पाक शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. लम्पट (विषयो) २. धृष्ट (शठ) ३. तर्कक (तर्क करना) किन्तु ४. अल्प (थोड़ा) अर्थ में सम्पाक शब्द वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है। सम्प्रयोग शब्द भी पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. सम्बन्ध (संसर्ग) २. मैथुन (विषयभोग) ३. कार्मण (जड़ी बूटी आदि से उच्चाटन मारण मोहन करना) और ४. अर्थित (प्रार्थित याचित)। मूल : संप्रयोगी कलाकेलो कामुके संप्रयोजके । सम्प्रहारस्तु गमने संग्रामे हननेऽपि च ॥२१४२॥ सम्यगाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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