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मूल :
३२२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-शंकु शब्द
हिन्दी टीका-शंकु शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं- १. महादेव, २. कलुष (पाप) और ३. यादस् (जलचरजन्तु) । शंकुला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. पूगकर्तनी (सुपारी को काटने वाला श रौता-छुरी) और २. कुवलय पत्री (कमल की पत्ती)। शंख शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके सात अर्थ माने गये हैं-१. ललाटास्थि (ललाट-भाल की अस्थि हड्डी) २. कम्बु (शंख) और ३. संख्यान्तर (संख्या विशेष-शंख नाम की बड़ी संख्या दशनिखर्व-लक्षकोटि संख्या) और ४. निधि (खान) तथा ५. दन्ति दन्तान्तराल (हाथी के दाँत का मध्य भाग) तथा ६ रणवाद्यान्तर (रणवाद्य विशेष समर भूमि का नगारा) और ७. मुनि (मुनि विशेष शंख नाम के ऋषि)।
शंखकं वलयेऽस्त्री तु कम्बौ पुंसि शिरोरुचि । क्षुद्रशंखे बृहन्नख्यां स्मृतः शंखनखः पुमान् ।।१८५३।। शंखिनी श्वेत पुन्नागे स्त्रीभेद-यवतिक्तयोः ।
चोरपुष्पी-श्वेतवृन्दा - श्वेतचुक्रासु कीर्तिता ।।१८५४।। हिन्दी टीका-पुल्लिग तथा नपुंसक शंखक शब्द का अर्थ - १. वलय (कंगण) होता है किन्तु २. कम्बु (शंख) और ३. शिरोरुज् (मस्तक का रोग विशेष) अर्थ में शंखक शब्द पुल्लिग माना जाता है । शंख नख शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. क्षुद्रशंख (अत्यन्त छोटा शंख) और २. बृहन्नखी। शंखिनी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं -१. श्वेतपुन्नाग (सफेद केशर) २. स्त्रीभेद (स्त्री विशेष) ३. यवतिक्त, ४. चोरपुष्पी (पुष्प विशेष) ५. श्वेतवृन्दा (सफेद तुलसी) और ६. श्वेतचुका (सफेद नोनी नाम का शाक विशेष) को भी शंखिनी कहते हैं। मूल :
उपदेवता विशेषे बुद्ध - शक्त्यन्तरेऽप्यसौ । शंखी ना केशवे सिन्धौ शांखिके त्रिषु शंखिनि ॥१८५५॥ शची स्त्री शक्रभार्यायां वाँ स्त्रीकरणान्तरे ।
शठं तु तगरे लोहे कुंकुमेऽपि नपुंसकम् ॥१८५६।। हिन्दी टीका-शंखिनी शब्द के और भी दो अर्थ माने गये हैं-१. उपदेवता विशेष (अंग देवता विशेष) २. बुद्ध शक्त्यन्तर (भगवान बुद्ध की शक्ति विशेष) । शंखी शब्द नकारान्त पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं- १. केशव, २. सिन्धु और ३. शांखिक (शंख सम्बन्धि) किन्तु ४. शंखी अर्थ में शंखी शब्द त्रिलिंग है । शची शब्द का अर्थ-१. शक्रभार्या (इन्द्र की धर्मपत्नी) और २. वरी (शतावरी) ३. स्त्रीकरणान्तर (स्त्रीकरण विशेष) होता है । शठ शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं१. तगर (अगर) २. लोह और ३. कुंकुम (कंकु सिन्दूर)। मूल : शठी ना धूर्त-धुस्तूर-मध्यस्थपुरुषेषु च ।
शण्ड-शण्ढौ समौ वन्ध्यपुरुषऽन्तर्महल्लिके ॥१८५७॥ उन्मत्ते गोपतौ क्लीवे शतकुम्भोऽचलान्तरे।
कुलिशे वृन्दसंख्यायां शतकोटि: पुमान् स्मृतः ॥१८५८।। __ हिन्दी टोका-पुल्लिग शठ शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. धूर्त (वञ्चक वगैरह) २. धुस्तूर (धतूर) और ३. मध्यस्थपुरुष । शण्ड और शण्ढ शब्द समानार्थक है और इन दोनों के दो अर्थ होते हैं
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