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मूल :
नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित–व्यक्ति शब्द | ३१५ व्यङ्गो मण्डूक-हीनाङ्ग - मुखरोगभिदासु च ।
व्यञ्जनं सूप-शाकादौ दिने चिह्नऽर्धमात्रिके ॥ १८१० ॥ हिन्दी टीका-व्यक्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. पृथगात्मत्व (शरीरादि आत्मा की भिन्नता) २. स्पष्टता (स्फुटता) और ३ जन। पुल्लिग व्यग्र शब्द का अर्थ१. नारायण (भगवान् विष्णु) होता है किन्तु २. व्यासक्त (अत्यन्त आसक्त) और ३. व्याकुल अर्थ में व्यग्र शब्द त्रिलिंग माना जाता है । व्यङ्ग शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. मण्डूक (मेढक-एड़का) २. हीनाङ्ग (अङ्गहीन) और ३. मुखरोगभिदा (मुख रोग विशेष)। व्यञ्जन शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. सूपशाकादि (दाल शाक वगेरह) २. दिन, ३. चिह्न और ४. अर्धमात्रक (आधो मात्रा वाला क्योंकि व्यञ्जन अक्षर ककारादि को आधी मात्रा होती है)।
स्त्रीपुंसयोर्गुह्यदेशे श्मश्रुण्यऽवयवे स्मृतम् । व्यतिषङ्ग व्यतिकरः सम्बन्धे व्यसने चये ॥ १८११ ।। व्यतीपातो महोत्याते योगभेदापयानयोः ।
व्यपदेशो नामधेये छल-वाक्य विशेषयोः ॥ १८१२।। हिन्दी टीका-व्यञ्जन शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं -१. स्त्रीपुंसयो" ह्यदेश (स्त्री और पुरुष का गुह्यप्रदेश-गुह्याङ्ग-मूत्रन्द्रिय) और श्मश्रु (दाढ़ी) और ३. अवयव (अङ्ग) को भी व्यञ्जन कहते हैं । व्यतिकर शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१. व्यतिषङ्ग (सम्पर्क) २. सम्बन्ध (संयोग वगैरह) और ३. व्यसन (आपत्ति) तथा ४. चय (समुदाय) । व्यतोपात शब्द के भो तीन अर्थ होते हैं-१. महोत्पात (अत्यन्त उपद्रव) २. योगभेद (योग विशेष विष्कम्भादि २७ सत्तावीश योग के अन्तर्गत सत्रहवाँ योग विशेष) और ३. अपयान (कुमार्गगमन) । व्यपदेश शब्द के भी तीन अर्थ माने गये हैं-१. नामधेय (संज्ञा) २. छल (कपट) और ३. वाक्य विशेष (व्यपदेश-आरोपात्मक वाक्य) । मूल : व्यभिचारः कदाचार-शास्त्रान्तर्गत-दोषयोः ।
व्यलीकमप्रियेऽकार्य - कामजन्यापराधयोः ॥ १८१३ ॥ वैलक्ष्ये पीडने ब्यंग्ये तथा गतिविपर्यये ।
व्यवच्छेदः पृथक्त्वे स्याद् व्यावृत्तौ बाणमोक्षणे ॥१८१४॥ हिन्दी टीका-व्यभिचार शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. कदाचार (कुत्सित आचरण, दुराचार) और २. शास्त्रान्तर्गतदोष (न्यायशास्त्र का व्यभिचार नाम का हेत्वाभास विशेष)। व्यलीक शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं -१. अप्रिय (खराब) २. अकार्य (अकर्तव्य) और ३. कामजन्यापराध (काम भावना जन्य गलती) को भी व्यलीक कहते हैं। व्यलीक शब्द के भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. वैलक्ष्य (निर्लज्जता) २. पीडन (सताना) और ३. व्यंग्य (व्यंग्यार्थ) और ४. गतिविपर्यय (गमन का विपर्यास वगैरह) व्यवच्छेद शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. पृथक्त्व (अलग, जुदाई) २. व्यावृत्ति (व्यावर्तन) और ३. बाणमोक्षण (शर को छोड़ना, चलाना) को भी व्यवच्छेद कहते हैं। मूल : व्यवसायो जीविकायामनुष्ठाने च निश्चये।
ब्यवहार: पणे न्याये विवादे पादपे स्थितौ ॥१८१५॥
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