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१४ | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित -
- अवष्टम्भ शब्द
५. आश्रित (आश्रय शरण में रहने वाला) इस प्रकार अवलेप शब्द के चार; अवश्याय शब्द के तीन; अवष्टम्भ शब्द के भी तीन और अवष्टब्ध शब्द के पाँच अर्थ हुए ।
मूल :
सौष्ठवे ।
अवष्टम्भो स्तम्भ - हेम प्रारम्भेषु च अवष्टम्भस्तु प्रारम्भे स्तम्भे हेमनि प्रस्तावे वर्षणे मन्त्रविशेषे वत्सरे
सौष्ठवे ॥६६॥ क्षणे ।
अवकाशेऽप्यवसरोऽवस्करो गुह्य - गूथयोः ॥ ६७ ॥
हिन्दी टीका - अवष्टभ शब्द पुल्लिंग है उसके चार अर्थ होते हैं - १. स्तम्भ (खम्भा ) २. हेम (सोना) ३. प्रारम्भ ४. सौष्ठव (सुन्दरता - रमणीयता) इस श्लोक का उत्तरार्ध भी पूर्वाद्ध का ही रूपान्तर प्रतीत होता है इसलिए इस उत्तरार्ध का अर्थ भी पूर्वाद्ध के समान ही समझना चाहिए केवल शब्दों को आगे पीछे मात्र कर दिया गया है । अवसर शब्द पुल्लिंग है और उसके छँ अर्थ होते हैं - १. प्रस्ताव (प्रस्तावना) २. वर्षण (वरसना) ३. मन्त्र विशेष (मन्त्रणा ) ४. वत्सर (वर्ष) ५. क्षण ( मिनट ) ६. अवकाश भी अवसर शब्द का अर्थ है । अवस्कर शब्द भी पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं १. गुह्य (गुप्तइन्द्रिय विकार) २. गूथ ( विष्ठा) ।
मूल :
जिनकालविशेषे स्त्री चोत्सर्पिण्यवसर्पिणी । अवसानं विरामे स्यान्मृत्यो सीमनि चेष्यते ॥ ६८ ॥ अवसायः पुमान् शेषे समाप्तौ निश्चयेऽपि च ।
अविर्मेषे गिरौ सूर्ये नाथे मूषिक- कम्बले ||६६||
हिन्दी टीका - उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी ये दोनों शब्द स्त्रीलिंग माने जाते हैं और इन दोनों शब्दों के जिन भगवान् तीर्थङ्कर प्रभु के द्वारा संकेतित काल विशेष होते हैं उन में भी धर्मादि वृद्धि - उन्नति काल को उत्सर्पिणी कहते हैं और धर्मादि हास काल (अवनतिकाल ) को अवसर्पिणी कहते हैं । भगवती सूत्र में सुधर्मा स्वामी ने इन दोनों का विश्लेषण करके बतलाया है । अवसान शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. विराम (समाप्ति) २. मृत्यु ( मरण) ३. सीमा (हद - अवधि ) | अवसाय शब्द पुल्लिंग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं - १. शेष ( बचा हुआ भाग ) २. समाप्ति ( पूरा हो जाना) और ३. निश्चय (निर्णय) अवि शब्द भी पुल्लिंग माना जाता है और उसके छं अर्थ होते हैं - १. मेष ( घंटा - भेड़ा) २. गिरि ( पहाड़ ) ३. सूर्य, ४. नाथ (स्वामी मालिक) ५. मूषिक ( चूहा - उन्दर) ६ कम्बल । इस प्रकार उत्सर्पिणी ( वृद्धि काल ) अवसर्पिणी ( ह्रास काल ) एवं अवसान शब्द के तीन; अवसाय शब्द के भी तीन और अवि शब्द के ६ अर्थ समझना चाहिए ।
मूल :
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प्राचीरे मारुते पुंसि पुष्पवत्यां स्त्रियां मता । अब्दः संवत्सरे मेघे मुस्तायां पर्वतान्तरे ॥७०॥ अव्यक्तः पुंसि कन्दर्पे शिवे कृष्णेऽस्फुटे त्रिषु । अव्यक्तं महदादौ च प्रकृतौ परमात्मनि ॥ ७१ ॥
हिन्दी टीका -- इसी प्रकार १० - प्राचीर (किले की ऊंची दीवार ) और २. मारत (पवन) इन
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