________________
नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - वृषल शब्द | ३०६ वृषलोsधार्मिके शूद्रे चन्द्रगुप्तनृपे हये । शूद्र्यां सार्तवकन्यायां वृषली परिकीर्त्यते ||१७७३॥ वृषा पुमान् शुनाशीरे वेदनाज्ञान- दुःखयोः । घोटके श्रवणे भद्रे कपिकच्छ्वां वृषा स्त्रियाम् ॥१७७४॥
हिन्दी टीका - वृषल शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं - १. अधार्मिक (पापी पुरुष) २. शूद्र, ३. चन्द्रगुप्तनृप (चन्द्रगुप्त नाम का राजा) और ४. हय (घोड़ा) । स्त्रीलिंग वृषली शब्द के दो अर्थ माने गये हैं - १. शूद्री (शूद्र की स्त्री या शूद्र स्त्री जाति) और २. सार्तवकन्या (रजस्वला कन्या) को भी वृषली कहते हैं । नकारान्त वृषा शब्द पुल्लिंग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं - १. शुनाशीर (इन्द्र) २. वेदनाज्ञान (अनुभवात्मक ज्ञान ) ३. दुःख, ४. घोटक (घोड़ा) ५. श्रवण (कान) ६. भद्र ( वलीवर्द कुशल वगैरह ) किन्तु ७. कपिकच्छू (कवोंच कवाछु ) अर्थ में वृषा शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है । इस प्रकार वृषा शब्द के सात अर्थ जानना ।
मूल :
मूल :
वृषाकपायी गौरी श्री शची स्वाहासु कीर्तिता । वृषाकपिः शिवे विष्णौ शक्र े वैश्वानरे पुमान् ॥१७७५।। वृषाङ्कः शंकरे षण्डे साधौ भल्लातके स्मृतः । वृष्णि कृष्णे यदौ गोपे मेषे पाषण्ड - चण्डयोः ।।१७७६॥
हिन्दी टीका - वृषाकपायी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार ३. शची (इन्द्राणी) और ४. स्वाहा । वृषाकपि शब्द पुल्लिंग है और उसके २. विष्णु, ३. शक्र (इन्द्र) और ४. वैश्वानर (अग्नि) । वृषाङ्क शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भी चार अर्थ माने गये हैं - १. शंकर, २. षण्ड (नपुंसक हिजड़ा ) ३. साधु (मुनि) ४. भल्लातक ( वृक्ष विशेष वगैरह ) । वृष्णि शब्द के छह अर्थ माने जाते हैं - १. कृष्ण २. यदु, ३. गोप, ४. मेष (गेटा) ५. पाषण्ड ( पाखण्डी ) तथा ६. चण्ड (प्रचण्ड) |
मूल :
Jain Education International
अर्थ होते हैं - १. गौरी, २. श्री, भी चार अर्थ होते हैं - १. शिव
बृहती स्त्री वारिधानी भण्टाकी - महतीषु च ।
संव्याने कण्टकारी - वाक् - छन्दोभेदेषु कीर्तिता ॥ १७७७॥
कटुतुम्बी महाजम्बू - कूष्माण्डीषु बृहत्फला । इन्द्रे मन्त्रे यज्ञपात्रे सामांशेऽपि बृहद्रथः ।। १७७८ ।।
हिन्दी टीका - बृहती शब्द स्त्रीलिंग है और उसके सात अर्थ माने गये हैं- १. वारिधानी (समुद्र) २. भण्टाकी (रिंगन, बंगन, भण्टा ) और ३. महती ( महती नाम की वीणा ) को भी बृहती कहते हैं। ४. संव्यान (चादर दोपट्टा वगैरह ) ५. कण्टकारी ( रेंगनी कटैया ) ६. वाक् (वाणी) और ७. छन्दोभेद (छन्द बिशेष, बृहती नाम का मात्रा छन्द) । बृहत्फला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते - १. कटुतुम्बी ( कड़वी दुद्धी ) २. महाजम्बू ( बड़ा जामुन ) ३. कूष्माण्डी (कोहला, कुम्हर या कदीमा) । बृहद्रथ शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं -१ इन्द्र, २. मन्त्र, ३. यज्ञपात्र (यज्ञ सम्बन्धी पात्र विशेष ) और ४. सामांश ( सामवेद भाग ) को भी बृहद्रथ कहते हैं ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org