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३०० j नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-विशाला शब्द
विशालाक्षः शिवे ताये सुनेत्रे त्वभिधेयवत् ।
विशालाक्षी तु पार्वत्यां नागदन्त्यां वरस्त्रियाम् ॥१७२०॥ हिन्दी टीका-स्त्रीलिंग विशाला शब्द के पांच अर्थ माने गये हैं -१. इन्द्रवारुणी (इनारुन) २. तीर्थभिद् (तीर्थ विशेष) ३. दक्षकन्या (दक्ष प्रजापति की लड़की) ४. उज्जयिनी और ५. उपोदकी (पोई का शाक) किन्तु ६. बृहत् (बड़ा) अर्थ में विशाल शब्द त्रिलिंग माना जाता है। विशालाक्ष शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. शिव (भगवान शंकर) और २. तामू (गरुण) किन्तु ३. सुनेत्र (विशाल नयन) अर्थ में विशालाक्ष शब्द अभिधेयवत् (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है। किन्तु स्त्रीलिंग विशालाक्षी शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. पार्वती (दुर्गा) २. नागदन्ती (खूटी) और ३. वरस्त्री (श्रष्ठ स्त्री) अर्थ भी होता है। मूल : विशिख स्तोमरे बाणे शिखाहीने त्वसौ त्रिषु ।
विशिखा नालिकायां स्यात् खनित्री-रथ्ययोः स्त्रियाम् ॥१७२१॥ विशुद्धं विशदे सत्ये चक्र च निभृते त्रिषु।
विशेषस्तिलके व्यक्तौ काव्यालंकरणेऽपि च ।।१७२२।। हिन्दी टीका--पुल्लिग विशिख शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. तोमर (शस्त्र विशेष) २. बाण किन्तु ३. शिखाहीन (चोटी रहित) अर्थ में विशिख शब्द त्रिलिंग माना जाता है। स्त्रीलिंग विशिखा शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. नालिका (बन्दूक की नली) २. खनित्री (खनती) और ३. रथ्या (गली) । विशुद्ध शब्द त्रिलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. विशद (स्वच्छ) २. सत्य, ३. चक्र (पहिया वगरह) और ४. निभत (एकान्त) । विशेष शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. तिलक (तिलक नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) २. व्यक्ति (जाति भिन्न) और ३. काव्यालंकरण (काव्य का अलंकार विशेष, जिसको विशेषालंकार) कहते हैं । इस प्रकार विशेष शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए। मूल :
प्रकारे च प्रभेदे च पदार्थान्तर एव च। विश्रम्भः केलिकलहे विश्वासे प्रणये वधे ॥१७२३।। विश्रुतस्त्रिषु संहृष्ट प्रसिद्ध - ज्ञातयोरपि ।
विश्वं तु भुवने शुण्ठ्यां बोले पुंसि तु नागरे ॥१७२४॥ हिन्दी टीका-विशेष शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. प्रकार (तद्भिन्न तत्सदृश) २.प्रभेद (प्रकार) और ३. पदार्थान्तर (पदार्थ विशेष, वैशेषिक न्यायाभिमत विशेष नाम का पदार्थ)। विश्रम्भ शब्द पूल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. केलिकलह (रतिकालिक प्रणय कलह) २. विश्वास (यकोन) ३. प्रणय (प्रेम) और ४. वध (हिंसा--मारना)। विश्रुत शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. संहृष्ट (प्रसन्न) २. प्रसिद्ध (विख्यात) और ३. ज्ञात (विज्ञात)। नपुंसक विश्व शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. भुवन (संसार-जगत) २. शुण्ठी (सोंठ) और ३. बोल (वोर - गन्धरस) किन्तु ४. नागर (नागरिक) अर्थ में विश्व शब्द पुल्लिग माना जाता है । मूल : गणदेव विशेषे च मानभेदेऽखिले त्रिषु ।
विश्वकर्मा सहस्रांशौ त्रिदशानां च शिल्पिनि ॥१७२५।।
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