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२७४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित--ललन शब्द मूल : बाले साले प्रियाले च ललनः कामनान्विते ।
लोहितो भुजगे भौमे रक्तवर्णे मृगान्तरे ॥१५६३॥ रक्तशालौ मसूरे च रक्तालू - बलभेदयोः ।
रोहिताख्यझषे तद्वद् नदभेदे सुरान्तरे ॥१५६४॥ हिन्दी टोका--पुल्लिग ललन शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. बाल (शिशु बच्चा) २. साल (साल-शाखोट वृक्ष) ३. प्रियाल (चिरौंजी, पियार) और ४. कामनान्वित (कामनायुक्त)। लोहित शब्द के भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. भुजग (सर्प) २. भौम (मंगलग्रह। ३. रक्तवर्ण (लाल वर्ण) तथा ४. मृगान्तर (मृग विशेष, प्रशस्त हरिण) । लोहित शब्द के और भी सात अर्थ माने जाते हैं-१. रक्तशालि (लाल धान-राङो वगैरह धान विशेष) २. मसूर (मसुरी) ३. रक्तालू (रतालू) ४ बलभेद (बल विशेष बल नाम का राक्षस विशेष वगैरह) ५. रोहिताख्यझष (रोहित रहु नाम की मछली) इसी प्रकार ६. नदभेद (नद विशेष - शोण नाम का नद विशेष) और ७. सुरान्तर (सुर विशेष)। मूल : वंश इक्षौ सालवृक्षे वाद्यभाण्डान्तरे कुले ।
स्यात् पृष्ठावयवे वेणु-गानस्वर विशेषयोः ।।१५६५॥ वक्रः शनैश्चरे चन्द्रे रुद्रे पर्पट-भौमयोः।
वक्र च स्यान्नदीवंके त्रिषु तु क्रूर-भुग्नयोः ॥१५६६॥ हिन्दी टीका-वंश शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ माने गये हैं-१. इक्षु (गन्ना शेर्डी) २. सालवृक्ष (शाखोट वृक्ष वगैरह) ३. वाद्यभाण्डान्तर (वाद्य भाण्ड विशेष) ४. कुल (खानदान वंश) ५. पृष्ठावयव (पीठ का रीढ) ६. वेणु (बांस) और ७ गानस्वर विशेष (गान का स्वर विशेष) । पुल्लिग वक्र शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं-'. शनैश्चर (शनिग्रह) २. चन्द्र, ३. रुद्र (भगवान शंकर) ४. पर्पट (पर्पट नाम का वृक्ष विशेष) और ५. भौम (मंगलग्रह) किन्तु नपुंसक वक्र शब्द का अर्थ-१. नदीवंक (नदी का टेढ़ा भाग) परन्तु त्रिलिंग वक्र शब्द के दो अर्थ माने गये हैं –१. क्रूर (घातक) और २. भुग्न (टेढ़ा)। मूल : वचण्डी शारिका-वर्ति-शस्त्र भेदेषु च स्त्रियाम्।
वज्रधात्र्यां लौहभेदे काजिके बालके पवौ ॥१५६७।। वज्रपुष्पे हीरकेऽथ वज्रः सेहुण्डपादपे ।
कोकिलाक्ष तरौ कृष्णप्रपौत्रे श्वेत बहिषि ॥१५६८।। हिन्दी टीका-वचण्डी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. शारिका (मैना) २. वति (वत्ती) ३. शस्त्रभेद (शस्त्र विशेष) । नपुंसक वज्र शब्द के सात अर्थ होते हैं-१. धात्री (आमलकी आमला) २. लोहभेद (लौह विशेष, इस्पात) ३. काजिक (कांजी) ४. बालक, ५. पवि (वज्र) तथा ६. वज्रपुष्प (तिल का फूल) और ७. हीरक । पुल्लिग वज्र शब्द के चार अर्थ माने गये हैं -१. सेहुण्डपादप (सेहुण्ड नाम का वृक्ष विशेष) २. कोकिलाक्षतरु (ताल मखाना का वृक्ष) ३. कृष्णप्रपौत्र (भगवान कृष्ण का प्रपौत्र-उसका भी वज्र नाम था) और ४. श्वेतबर्हिष् (सफेद कुश) को भी वज्र कहते हैं । मूल :
स्नुहोवो कोकिलाक्षवृक्षे स्याद् वज्रकण्टकः । गणेशे मशके वज्रतुण्डो गरुड - गृध्रयोः ॥१५६६।।
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