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मूल :
नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-रभस शब्द | २६१ .२ पतोली (गली) और ३. चत्वर (चौराहा)। रन्तु शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. वर्त्म (रास्ता) और २. सरित् (नदी)। रद शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. दन्त (दांत) और २. विलेखन (दांत गड़ाना-दांत से क्षत करना)।
औत्सुक्य - वेग - हर्षेषुरभसो निर्विचारणे। पटोलमूले जघने मैथने रमणे स्मृतम् ॥१४८७॥ गर्दभे वृषणे पत्यौ रमणौ मीनकेतने ।
रमा लक्ष्मी-कल्किराजपत्नी-शोभासु कीर्तिता ॥१४८८॥ हिन्दी टीका-रभस शब्द के चार अर्थ माने गये हैं-१. औत्सुक्य (उत्सुकता-उत्कंठा) २. वेग, ३. हर्ष (आनन्द) और ४. निर्विचारण (विचार नहीं करना)। नपुंसक रमण शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. पटोलमूल (परबल का मूल भाग) २. जघन (जंघा का ऊपर भाग) और ३. मैथुन (रति, भोगविलास)। किन्तु पूल्लिग रमण शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. गर्दभ (गदहा) २. वृषण (अण्डकोश) ३. पति और ४. मीनकेतन (कामदेव) । रमा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं- १. लक्ष्मी, २. कल्किराजपत्नी (कलियुग की राजपत्नी) और ३. शोभा। इस प्रकार रमा शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए। मूल : काले कामे नायके ना रमतिः स्वर्ग-काकयोः ।
रम्भा तु कदली-गौर्यो वेश्याभेदे च गोध्वनौ ॥१४८६॥ मृगभेदे कम्बले च रल्लको रवणस्त्वसौ।
चञ्चले भण्डके तीक्ष्णे शब्दने कोकिले त्रिषु ॥१४६०।। हिन्दी टोका-रमति शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ माने गये हैं—१. काल, २. काम, ३. नायक, ४. स्वर्ग और ५. काक । रम्भा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. कदली (केला) २. गौरी (पार्वती) ३. वेश्याभेद (वेश्या विशेष) और ४. गोध्वनि (गाय-बैल की आवाज) । रत्नक शब्द के दो अर्थ होते हैं --१. मृगभेद (मृग विशेष) २. कम्बल । रवण शब्द त्रिलिंग है और उसके पांच अर्थ माने गये हैं-१. चञ्चल (चपल) २. भण्डक (भाण्ड-वर्तन वगैरह) ३. तीक्ष्ण (तीखा) ४. शब्दन (शब्द करना) और ५. कोकिल (कोयल)। मूल : रविरर्के ऽर्केवृक्षे च रश्मिर्ना प्रग्रहोस्रयोः ।
रसो वीर्ये गुणे रागे द्रवे गन्धरसे जले ॥१४६१।। पारदे षड्रसे शृगारादि - काव्यरसे विषे ।
रसा स्त्रियां रसमयी-द्राक्षा-कंगूषु कीर्तिता ॥१४६२॥ हिन्दी टोका-रवि शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. अर्क (सूर्य) और २. अर्कवृक्ष (ऑक का वृक्ष)। रश्मि शब्द पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं-१. प्रग्रह (लगाम) और २. उस्र (किरण)।
स अर्थ माने गये हैं-१. वीर्य, २. गण, ३. राग, ४. द्रव (तरल) ५. गन्धरस (वोर) ६. जल (पानी) ७. पारद (पारा) ८. षड्रस (छह रस-आम्ल, लवण, मधुर, कषाय, तिक्त, कटु) ६. शृङ्गारादि काव्य रस (शृङ्गार-वीर-करुण-हास्य-भयानक-रौद्र-बोभत्स-अद्भुत और शान्त रस) तथा १०. विष
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