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२५४ | नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - मालिक शब्द
हिन्दी टीका मालिक शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं- १. मालाकार (माली २. पक्षिभेद (पक्षी विशेष, मालिक नाम का पक्षी) और ३. रञ्जक (रंगरेज वगैरह ) को भी मालिक कहते हैं । मिहिर शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. अर्कतरु ( ऑक का वृक्ष) २. सूर्य, ३. चन्द्र, ४, मेघ (बादल) और ५. मारुत (पवन वायु) । मीन शब्द भी पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. राश्यन्तर ( राशि विशेष, मीन राशि) २. मत्स्य (मछली) । मुकुन्द शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं - १. केशव (भगवान विष्णु ) और २. निधि (खनि, खान) । मुकुर शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. मल्लिका पुष्पवृक्ष (मोगरा फूल का वृक्ष) और २. बकुलपादप (मोलशरी फूल का वृक्ष) इस प्रकार मुकुर शब्द के दो अर्थ जानने चाहिए ।
मूल :
कुलालदण्ड आदर्शे कोरके कुलपादपे । मुक्ताफलं स्यात् कर्पूरे मौक्तिके लवलीफले ॥१४४६।।
मुखं प्रधाने प्रारम्भे वक्त्रे शब्दे च नाटके | उपाये सन्धिभेदे च वेदे निःसारणा ssद्ययोः ॥१४४७ ।।
हिन्दी टीका - मुकुर शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं - १. कुलालदण्ड (कुम्हार का दण्ड) २. आदर्श (दर्पण) ३. कोरक (कली) और ४. कुलपादप ( कुल नाम का वृक्ष विशेष ) । मुक्ताफल शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. कर्पूर, २. मौक्तिक (मोती) और ३. लवलीफल (लवली नाम का पर्वतीय लता विशेष का फल ) । मुख शब्द नपुंसक है और उसके दस अर्थ माने जाते हैं१. प्रधान (मुख्य) २. प्रारम्भ ( आरम्भ, शुरुआत ) ३. वक्त्र (मुख) ४. शब्द, ५. नाटक, ६. उपाय, ७. सन्धिभेद (सन्धि विशेष, मुख नाम की सन्धि ) और ८. वेद (ऋग्वेद वगैरह ) तथा ६. निःसारण (निकालना) और १०. आद्य ( पहला ) ।
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मूल :
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मुण्डो राहुग्रहे दैत्ये नापित-स्थाणुवृक्षयोः ।
. अस्त्रियां मस्तके प्रोक्तस्त्रिषु मुण्डितमूर्द्धनि ॥१४४८ ॥ मुद्रा प्रत्ययकारिण्यां रुप्यके सीसकाक्षरे ।
मुनि जिने वशिष्ठादौ पियाले किशुकद्रुमे || १४४६ ॥
हिन्दी टीका - मुण्ड शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. राहुग्रह, २. दैत्य (मुण्ड नाप का राक्षस विशेष ) ३. नापित (हज्जाम, नोआ) ४. स्थाणुवृक्ष ( डाल-पात रहित सूखा वृक्ष विशेष) किन्तु ५. मस्तक अर्थ में मुण्ड शब्द पुल्लिंग तथा नपुंसक माना जाता है और ६. मुण्डितमूर्धा (मुड़ाया हुआ मस्तक) अर्थ में मुण्ड शब्द त्रिलिंग माना जाता है। मुद्रा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं—१. प्रत्ययकारिणी ( विश्वास कराने वाली मोहर छाप ) २. रुप्यक ( रुपया) और ३. सीसकाक्षर ( शीशा का अक्षर, मुद्रण- टाइप) । मुनि शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-- १. जिन (भगवान तीर्थंङ्कर) २. वशिष्ठ आदि (वशिष्ठ वगैरह महर्षि) ३. पियाल (चिरौंजी ) और ४. किंशुकद्र म ( पलाश वृक्ष ) ।
मूल :
मुष्कोऽण्डकोशे संघाते तस्करे मोक्षकद्रुमे । मुष्टिः पलवमाने स्यात् त्सरौ संपिण्डितांगुलौ ॥१४५०।।
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