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नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टोका सहित-अनुराग शब्द | ७ मूल : अनुरागः पुमान् स्नेहे व्यासक्तावपि कीर्तितः ॥२७॥
ढेषेऽनुतापेऽनुशयोऽनुबन्धेपि पुमान् मत: ।
अनुकूलं स्वभावे स्यात्कुले च गतजन्मनि ॥२८॥ हिन्दी टीका-अनुराग शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. स्नेह (प्रेम) और व्यासक्ति (आसक्ति विशेष) ।। २७ ।। इसी तरह अनुशय शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. द्वेष (अप्रीति-डाह), २ अनुताप (पीछे पछताना) और ३. अनुबन्ध (प्रयोजन बगैरह) । इसी तरह अनुकूल शब्द के भी तीन अर्थ होते हैं-१. स्वभाव (आदत), २. कुल (खानदान, वंश) और ३. गतजन्म (पहला जन्म)। इस प्रकार अनुराग शब्द के दो और अनुशय के तीन तथा अनुकूल शब्द के भी तीन अर्थ समझना चाहिए। मूल :
अन्तःस्वरूपे सीमायां निश्चयेऽवयवेऽन्तिके । रम्ये समाप्तौ निधने स्वभावेऽवसितेऽपि च ॥२६॥ अन्तरं छिद्र-तादर्थ्य-भेदेष्वन्तद्धि-मध्ययोः ।
आत्मीयेऽवसरे तुल्ये परिधानेऽन्तरात्मनि ॥३०॥ हिन्दी टोका-अन्तः शब्द अव्यय माना जाता है और इसके १० अर्थ होते हैं-१. स्वरूप (चेहरा), २. सीमा (हद-अवधि), ३. निश्चय (निर्णय), ४. अवयव (एकदेश), ५. अन्तिक (निकट), ६. रम्य (रमणीय-मनोहर), ७. समाप्ति (पूरा होना), ८. निधन (मृत्यु), ६. स्वभाव (आदत) और १०. अवसित (निश्चित) ॥ २६ ॥ अन्तर शब्द नपुंसक है और उसके भी दश अर्थ होते है -१. छिद्र (सुराक, बिल), २. तादर्थ्य (उसके निमित्त), ३. भेद, ४. अन्तद्धि (छिप जाना, अन्तर्धान) ५. मध्य (बीच), ६. आत्मीय (अपना-निज), ७. अवसर (मौका), ८. तुल्य (समान), ६. परिधान (पहनने का कपड़ा, वस्त्र) और १०. अन्तरात्मा (हृदय) । इस प्रकार अन्तः शब्द के दश और अन्तर शब्द के भी दश अर्थ माने जाते हैं। मूल :
बहिविनाऽवधि-प्रान्ता-वकाशेषु नपुंसकम् । अन्तरा वर्जने मध्ये विनार्थे निकटेऽव्ययम् ॥३१।। अपकारोऽपक्रियायां द्रोहे निःक्षेपकर्मणि ।
पूजायां निष्कृतौ हानौ व्ययेऽप्यपचितिः स्त्रियाम् ॥३२॥ हिन्दी टीका-बहिस् शब्द भी अव्यय होने से नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं१. बिना (नहीं, निषेध), २. अवधि (हद-सीमा), ३. प्रान्त (एक देश-एक भाग) और ४. अवकाश (खाली)। अन्तरा शब्द भी अव्यय है और उसके भी चार अर्थ होते हैं-१ वर्जन (छोड़ना-त्याग), २. मध्य (बीच), ३. विनार्थ निषेध अर्थ में) और ४ निकट (नजदीक) ॥ ३१ ॥ अपकार शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. अपक्रिया (अपकार-नुकसान-हानि), २. द्रोह (शत्रुता-ईर्ष्या-द्वेष) और ३. निःक्षेपकर्म (थाती रखना, धरोहर के रूप में रखना) । अपचिति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं१. पूजा (सत्कार-पूजन), २. निष्कृति (उऋणता), ३. हानि (नुकसान) और ४. व्यय (खर्च) ॥ ३२ ॥ इस प्रकार बहिस शब्द के चार एवं अन्तरा शब्द के भी चार तथा अपकार शब्द के तीन और अपचिति शब्द के चार अर्थ समझना चाहिए।
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