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________________ २३६ | नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - बलज शब्द २. काक, ३. दैत्य (बल नाम का दैत्य विशेष) और ४. वरुण पादप ( वरुण नाम का वृक्ष विशेष ) । इस प्रकार बल शब्द के नौ अर्थ जानना । मूल : केदारे बलजं नगरद्वारे शस्य- युद्धयोः । बलभद्रः प्रलम्बघ्ने शेषे गवय - लोध्रयोः ॥ १३३६|| बलाहको गिरौं मेघे दैत्य - नागविशेषयोः । बलि दैत्ये भागधेये पूजोपकरणेऽपि च ॥ १३४० ॥ हिन्दी टीका - बलज शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. नगरद्वार ( नगर का दरवाजा) २. केदार (खेत की क्यारी) ३. शस्य ( हरी फसल) और ४. युद्ध (संग्राम- लड़ाई ) । बलभद्र शब्द पुल्लिंग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं - १. प्रलम्बघ्न ( बलराम बलदेव) २. शेष ( शेषनाग ) ३. गवय (जंगली गाय - गो सदृश नील गाय विशेष) और ४. लोध (लाल लोध नाम का वृक्ष विशेष ) । बलाहक शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भो चार अर्थ होते हैं - १. गिरि (पर्वत, पहाड़ ) २. मेघ (बादल) ३. दैत्य (राक्षस) और ४. नागविशेष (सर्प विशेष ) । बलि शब्द भी पुल्लिंग है - १. दैत्य (दानव विशेष बलि नाम का राजा जिससे दामन भगवान ने तीन डग पृथ्वी माँगकर सारा राज्य ले लिया था) २. भागधेय ( भाग्यवान ) और ३. पूजोपकरण (पूजा का उपकरण विशेष) को भी बलि कहते हैं । इस प्रकार बलि शब्द के तीन अर्थ जानना । मूल : Jain Education International बली तालाङ्क - महिष - क्रमेलक कफेषु च । बल्यं प्रधान छातौ स्याच्छ्र क्र बलकरे त्रिषु ।। १३४१ ॥ अनेके विपुले त्र्यादिसंख्यायां च बहु त्रिषु । बहुकः कर्कटे सूर्ये दात्यूहे जलखातके ॥ १३४२॥ हिन्दी टीका - नकारान्त बलिन् शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. तालाङ्क (बलराम ) २. महिष, ३. क्रमेलक (ऊँट) और ४. कफ ( जुखाम ) । नपुंसक बल्य शब्द के दो अर्थ माने गये हैं- १. प्रधान धातु ( मुख्य धातु - सोना वगैरह ) २. शुक्र (धातु-वीर्य) किन्तु ३. बलकर ( बलकारक) अर्थ में बल्य शब्द त्रिलिंग माना जाता है । बहु शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. अनेक ( बहुत अधिक ) २. विपुल (प्रचुर ) और ३. त्र्यादिसंख्या (तीन वगैरह संख्या) । बहुक शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. कर्कट (कांकोर) २. सूर्य, ३. दात्यूह (धुएँ जैसे रंग वाला कौवा, कारकौवा, डोमकाक) और ४. जलखातक (जल की खाई) इस प्रकार बहुक शब्द के चार अर्थ जानना । मूल : बहुरूपः शिवे विष्णौ कन्दर्पे केश-सर्जयोः । वाणी व्यूतौ सरस्वत्यां वाक्येऽपि क्वचिदिष्यते ॥१३४३ ।। - बान्धवः सुहृदि ज्ञातौ बालो मूर्खेऽर्भके त्रिषु । बालोऽश्वशावके केशे तुरंग करिव ॥ १३४४॥ हिन्दी टीका -- बहुरूप शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. शिव (भगवान शंकर) २. विष्णु (भगवान विष्ण) ३. कन्दर्प (कामदेव ) ४. केश और ५. सर्ज (शाल - सखुआ ) । वाणी शब्द स्त्री For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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