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मूल :
२२८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-पुलक शब्द
पुष्करं कमले वाद्य भाण्डास्ये गगने जले।
कोषे करिकराग्रे चौषधि - तीर्थविशेषयोः ॥१२८६॥ हिन्दी टीका -- पुलक शब्द के छह अर्थ माने जाते हैं-१. गन्धर्वभेद (गन्धर्व विशेष) २. रोमाञ्च ३. पानभाजन (पीने का बर्तन) ४. हरिताल (हरिताल नाम का प्रसिद्ध औषध विशेष) ५. रत्नदोषविशेष और ६. उपलभेद (पत्थर विशेष) । पुष्कर शब्द नपुंसक है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं--१. कमल, २. वाद्यभाण्डास्य (वाद्य भाण्ड विशेष का मुख-अग्रभाग) ३. गगन (आकाश) ४ जल, ५. कोश. ६. करिकराग्र (हाथी के शुण्ड का अग्रभाग) और ७. औषधि तथा ८. तीर्थ विशेष (पुष्कर क्षेत्र जो कि अजमेर से १५ माइल की दूरी पर है)।
पुष्करः - सारसे नागभेदे नलसहोदरे । रोग द्वीपाद्रिभेदेषु जीमूते वरुणात्मजे ॥१२६०॥ करेणौ स्थलपद्मिन्यां खाते पुष्करिणी मता।
सरोजिन्यां पुष्कराहतीर्थभू - कुष्ठमूलयोः ॥१२६१।। हिन्दी टीका - पुष्कर शब्द के आठ अर्थ माने जाते हैं -१. सारस (सारस नाम का पक्षो विशेष) २. नागभेद (नाग विशेष) ३. नलसहोदर (नल का सहोदर भाई) ४. रोगभेद (रोग विशेष) ५. द्वीपभेद (द्वीप विशेष) ६. अद्रिभेद (पर्वत विशेष) ७. जीमूत (मेघ) और ८. वरुणात्मज (वरुण का पुत्र)। पुष्करिणी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं—१. करेणु (हथिनी) २ स्थलपद्मिनी (स्थलकमलिनी) ३. खात (खोदा हुआ) ४. सरोजिनी (कमलिनी) ५. पुष्कराह्वतीर्थभू (पुष्कर नाम का तीर्थ स्थल) ६. कुष्ठमूल (कूठ नाम के औषधि का मूल भाग)। मूल : पुष्पकं मृत्तिकाऽङ्गारशकट्यां रत्नकङ्कणे।
काशीसे श्रीदविमाने नेत्ररोगे रसाञ्जने ॥१२६२।। पुष्पदन्तस्तु दिङ नागे जिनभेदे गणान्तरे ।
पुष्पः कलियुगे पौषमास - नक्षत्र - भेदयोः ॥१२६३॥ हिन्दी टोका-पुष्पक शब्द के छह अर्थ माने जाते हैं-१. मृत्तिकाऽङ्गारशकटि (मिट्टी की गाड़ी) २. रत्नकङ्कण (रत्न सोने का कङ्गन-वलय-चूड़ी) ३. काशीस (कासपुष्प) ४ श्रीदविमान (कुबेर का विमान) ५. नेत्ररोग (आँख का रोग विशेष) ६. रसाञ्जन (नेत्र में लगाने का अञ्जन विशेष)। पुष्पदन्त शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. दिङ्नाग (बौद्धाचार्य) २. जिनभेद (जिनविशेष, पुष्पदन्त नाम के तीर्थङ्कर, जिनका सुविधिनाथ नाम भी प्रसिद्ध है) और ३. गणान्तर (गणविशेष-पुष्पदन्त नाम का प्रथमादि गण का विशेष व्यक्ति)। पुल्लिग पुष्प शब्द के भी तीन अर्थ माने जाते हैं- १. कलियुग. २. पौषमास और ३. नक्षत्र भेद (नक्षत्र विशेष) इस प्रकार पुल्लिग पुष्पदन्त शब्द के तीन अर्थ जानना।
पूगः कण्टकिवृक्षे स्याद् गुवाके व्यूह-भावयोः । पूतना दानवीभेदे गन्धमांस्यां गदान्तरे ॥१२६४॥ पूरणं पूरके पिण्डप्रभेदे वानतन्तुषु । पृथग्जनो भिन्नलोके मूर्खे नीचे च पापिनि ॥१२६॥
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