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२ | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित
--अग्र शब्द
हिन्दी टीका - अग शब्द पुल्लिंग है और उस के चार अर्थ होते हैं - १. सूर्य, २. भुजङ्ग, ३. पर्यंत ( पहाड़) और ४. महीरुह (वृक्ष, झार) । अग्नि शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. भल्लातक (भाला - बर्फी) २. स्वर्ग (सोना) ३. पित्त ४. निम्बुक (निम्ब) और ५. वह्नि (आग) । इस प्रकार अग्नि शब्द के पाँच अर्थ हैं ।
मूल :
अग्रोऽधिके प्रधाने च प्रथमेऽपि त्रिलिंगकः ।
अग्रजो ब्राह्मणे ज्येष्ठ भ्रातर्यग्रजनौ त्रिषु ॥ ४ ॥
हिन्दी टीका - अग्र शब्द त्रिलिंग (पुल्लिंग स्त्रीलिंग, नपुंसकलिंग ) है और उसके तीन अर्थ होते हैं -- १. अधिक (बहुत), २. प्रधान (मुख्य) और ३. प्रथम (पहला ) । अग्रज शब्द भी त्रिलिंग माना जाता हूँ और उसके भी तोन अर्थ हैं - १. ब्राह्मण, २. ज्येष्ठ भ्राता (बड़ा भाई) और ३. अग्रजनु अथवा अग्रजनि (पहला जन्म - उत्पत्ति) । यहाँ पर संस्कृत में अग्रजनि और अग्रजनु इन दोनों शब्दों का भी सप्तमी विभक्ति में 'अजनी' ऐसा रूप होता है जैसे 'विधौ' शब्द से विधि और विधु दोनों शब्दों का ग्रहण होता है इसी प्रकार यहाँ पर समझना चाहिए !
मूल :
अङ्कः क्रोडेऽपवादे च चिन्हे भूषणरेखयोः । . नाटकांशे चित्र युद्धे समीपे स्थान - देहयोः ॥ ५ ॥
हिन्दी टीका - अंक शब्द पुल्लिंग है और उसके दस अर्थ हैं - १. क्रोड (गोद), २. अपवाद ( कलंक, लोकनिन्दा ), ३. चिन्ह, ४. भूषण (अलंकार, जेबर), ५. रेखा ( लकीर ), ६. नाटकांश ( नाटक का एक अंश, एक भाग), ७. चित्रयुद्ध ( अद्भुत संग्राम, लड़ाई) = समीप ( नजदीक) ६. स्थान ( जगह - पद) और १०. बेह (शरीर ) । इस प्रकार अंक शब्द के दश अर्थ हैं ।
मूल :
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अंकुरोलोम्नि रुधिरे सलिलेऽभिनवोद्भिदि ।
अंगो देशान्तरे पुंसि निकटे काय-चित्तयोः ॥ ६ ॥
हिन्दी टीका - अंकुर शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. लोमन् (रोम ), २. रुधिर ( शोणित, खून), ३. सलिल (पानी, जल) और ४. अभिनवउद्भिद् ( नया तरु वृक्ष, गुल्म लता पौधा) । अंग शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. देशान्तर ( दूसरा देश, अन्य देश). २. निकट ( नजदीक), ३. काप (शरीर ) और ४ चित्त ( मन ) इस प्रकार अंकुर शब्द के तीन और अंग शब्द के चार अर्थ हैं । अंगजस्तनये कामे मदे कुन्तल - रोगयोः ।
मूल :
अंगणं चत्वरे याने गमनेऽङ्गनमित्यपि ॥ ७ ॥
हिन्दी टीका - अङ्गज शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. तनय (लड़का ) २. काम ( विषय वासना ), ३. मद ( नशा - अहंकार), ४. कुन्तल ( केश, वाल) और ५. रोग ( व्याधि) | अंगण शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. चश्वर (चौराहा, अंगना), २. यान ( रथ वगैरह सवारी) और ३. गमन ( जाना ) । इस प्रकार अंगज शब्द के पाँच और अंगण शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिए | किन्तु गमन अर्थ में 'अङ्गन' शब्द भी व्यवहृत होता है ।
मूल :
अंगना सार्वभौमाख्य दिग्गजस्त्री स्त्रियोर्मता । अंसः स्कन्धे विभागेऽथ दुःखैनोव्यसनेष्वघम् ।। ८ ।।
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