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मूल :
नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - नादेयी शब्द | १८३
नादेयी स्त्री काकजम्बू- नागरङ्ग-जवासु च । वैजयन्त्यां
भूमिजम्ब्यामग्निमन्थेऽम्बुवेतसे ।।१०१८ ।।
नाभि र्मुख्यनृपे गोत्रे प्रियव्रत नृपात्मजे । क्षत्रिये चक्रमध्ये च प्राण्यंगे तु द्वयोरसौ ॥ १०१६ ॥
हिन्दी टीका - नादेयी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके सात अर्थ माने गये हैं - १. काकजम्बू ( जम्बू विशेष जामुन ) २. नागरंग ( नारंगी सन्तरा ) ३. जवा (यवासा ) ४. वैजयन्ती ( पताका) ५. भूमि जम्बू (स्थल जामुन ) ६. अग्निमन्थ (अरणी, अग्नि को मन्थन करने को लकड़ी विशेष) और ७. अम्बुवेतस ( जलबेंत ) । नाभि शब्द पुल्लिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं - १. मुख्यनृप (प्रधान राजा ) २. गोत्र (वंश) ३. प्रियव्रत नृपात्मज (प्रियव्रत राजा का लड़का ) ४. क्षत्रिय (राजपूत) ५. चक्रमध्य ( गाड़ी का मध्य भाग) और ६. प्राण्यंग ( प्राणी का अंग विशेष - नाभि नामक प्रसिद्ध अंग - ढोंड़ी) इस प्रकार नाभि शब्द के छह अर्थ जानना ।
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कस्तूरिकायां स्त्रीलिंगो नाभीलं वंक्षणे स्त्रियाः ।
गर्भाण्डे नाभिगाम्भीर्ये कष्टेऽपि कवयो विदुः || १०२० ॥ नाम लिंगे नामधेये नामशेषो मृतेऽत्यये । नायको सरे सेनापतौ शृङ्गार साधके ॥ १०२१ ॥
हिन्दी टीका- १. कस्तूरिका (मृग नाभि ) अर्थ में नाभि शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है । नाभील शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. स्त्रियाः वंक्षण (स्त्री का वंक्षण - जंघा का सन्धि जोड़ - ऊरुसन्धि- ठेहुन ) २. गर्भाण्ड (गर्भाशय) और ३. नाभि गाम्भीर्य (नाभि की गहराई ) तथा ४. कष्ट (दुःख) भी नाभील शब्द का अर्थ होता है । नाम शब्द नकारान्त नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. लिंग (पुंस्त्व वगैरह ) और २. नामधेय (संज्ञा चैत्र-मैत्र जिनदास - जिनदत्त वगैरह ) । नामशेष शब्द पुल्लिंग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं - १. मृत (मरा हुआ) और २. अत्यय ( नाश) । नायक शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं – १. अग्र ेसर (मुखिया) २. सेनापति ( कमाण्डर) और ३. शृंगार साधक (श्रृंगार का साधक, श्रृंगार का प्रधान आश्रय) इस प्रकार नायक शब्द के तीन अर्थ जानना ।
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हार मध्यमणौ श्रेष्ठे नेतर्यपि बुधैः स्मृतः ।
नारं नर समूहे स्यान्नर सम्बन्धिनि त्रिषु ॥ १०२२॥ नारस्तु तर्णके नीरे नरकस्थेऽपि नारकः ।
नार कीटोsश्मकीटे स्यात्स्वदत्ताशा विहन्तरि ॥। १०२३ ॥
किन्तु २. नर सम्बन्धि
हिन्दी टीका नायक शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. हार मध्यमणि (मुक्ताहार वगैरह हार का मध्यमणि- गुटका - सुमेरु) और २. श्रेष्ठ (बड़ा ) तथा ३ नेता ( नेतृत्व करने वाला) । नार शब्द नपुंसक है और उसका अर्थ - १. नर समूह ( नर समुदाय) होता है (पुरुष सम्बन्धी ) अर्थ में नार शब्द त्रिलिंग माना जाता है। पुल्लिंग नार शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. तर्णक (नया बछड़ा) और २. नीर (जल, पानी) । नारक शब्द का अर्थ - नरकस्थ ( नरकवासी) होता है । नारकीट शब्द पुल्लिंग है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. अम्मकीट (पत्थर
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