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नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - द्रावक शब्द | १६५ (स्वर्ग) । द्रविण शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. काञ्चन (सोना) २. वित्त (धन) और ३. बल । द्युम्न शब्द नपुंसक है और उसके भी दो अर्थ होते हैं - १. धन और २. बल । द्रावको हृदयग्राहि - षिङ्गयोर्द्रवकारके । रसभेदे विदग्धे च मोषके प्रस्तरान्तरे
मूल :
।। ६१२॥
क्लीवन्तु सिवयक - प्लीहरोग भेषजभेदयोः । द्रुघणः द्रुहिणे भूमिचम्पके च परश्वधे ।। ६१३ ॥
हिन्दी टीका - द्रावक शब्द पुल्लिंग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं - १. हृदयग्राही ( हृदय प्रिय) २. षिङ्ग (नपुंसक) ३. द्रवकारक ( पिघलने वाला ) ४. रसभेद ( रसविशेष) ५. विदग्ध (चतुर) ६ मोषक (चुराने वाला) और ७. प्रस्तरान्तर (पत्थर विशेष ) नपुंसक द्रावक शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. सिक्यक (शीक छींका, जिस पर दही दूध वगैरह का बर्तन रखा जाता है) और २. प्लीहरोग भेषज भेद (प्लीह-यकृत रोग का औषधि विशेष ) । द्र ुघण शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते- १. द्रुहिण (ब्रह्म) और २. भूमिचम्पक (स्थल चम्पा का फूल ) और ३. परश्वध ( फरशा ) ।
मूल :
मुद्गरेऽस्त्रविशेषेऽथ द्रुणो वृश्चिक भृङ्गयोः ।
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द्रुतं जातद्रवीभाव घृत स्वर्णादि शीघ्रयोः ॥ ६१४ ॥ विद्राण शीघ्रलययोद्रुमो वृक्ष कुबेरयोः । द्रोणोऽस्त्रियामाढकेऽपि स्यात् आढकचतुष्टये ॥ ६१५ ॥
हिन्दी टीका - द्र ुघण शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. मुद्गर (गदा) और २. अस्त्र विशेष । द्र ुण शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. वृश्चिक (बिच्छू) और २. भृ ंग (भ्रमर) । द्र ुत शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. जातद्रवी भाव घृत स्वर्णादि (पिघला हुआ घृत और सोना वगैरह ) और २. शीघ्र द्रुत शब्द के और भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. विद्राण ( पलायन -- भाग जाना) और २. शीघ्रलय (जल्दी विलीन होना) । द्रुम शब्द पुल्लिंग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं - १. वृक्ष और २ कुबेर । द्रोण शब्द पुल्लिंग और नपुंसक है और उसके भी दो अर्थ माने गये हैं - १. आढक (ढाई सेर) और २. आढकचतुष्टय (दस सेर) इस प्रकार द्रोण शब्द के दो अर्थ जानना ।
मूल :
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द्रोणाचार्ये दग्धकाके वृश्चिके मेघनायके । द्रुमान्तरे ॥ ६१६ ॥
जलाशय - श्वेतवर्ण - क्षुद्रपुष्प
हिन्दी टीका - द्रोण शब्द के और भी स्मात अर्थ होते हैं - १. द्रोणाचार्य, २ . दग्धकाक ( काक विशेष ) ३. वृश्चिक (बिच्छू ) ४. मेघनायक (इन्द्र) ५. जलाशय (तालाब) ६. श्वेत वर्ण (शुक्ल रूप) और ७. क्षुद्रपुष्पद्र ुमान्तर (छोटा फूल वाला वृक्ष विशेष ) । इस तरह द्रोण शब्द के कुल मिलाकर नौ अर्थ होते हैं ।
मूल :
द्रोणी काष्ठाम्बुवाहिन्यां गवादन्यां सरिदुभिदि । शैलसन्ध
शैलभेदे
द्विसूर्पपरिमाणके ।। ६१७ ॥
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