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मूल :
नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-तूवर शब्द | १४७ विशेष) को भी तूवर कहते हैं । इसी प्रकार ५. कषाय रस और ६. प्रौढ़ाशृंगार (युवती का श्रृंगार) को भी तूवर शब्द से व्यवहार किया जाता है । तृणद्र म शब्द पुल्लिंग है। मूल : खर्जू रे केतकी-ताल्यो रिकेल - गुवाकयोः ।
खजूं रीवृक्ष-हिन्ताल - तालवृक्षेषु कीर्तितः ॥ ८०५ ॥ तृषा लांगलिकी वृक्षे कामकन्येच्छयोस्तृषि ।
तेजो वैश्वानरे दीप्तौ नवनीते पराक्रमे ॥ ८०६॥ हिन्दी टोका-तूवर शब्द के और भी आठ अर्थ माने जाते हैं-१. खजूर (खजूर) २. केतकी (केवड़ा फूल) ३. ताली (ताल का वृक्ष, तार) ४. नारिकेल (नारियल) ५. गुवाक (सुपारी) ६. खजूं रीवृक्ष (खजूर का पेड़) ७. हिन्ताल, और ८. तालवृक्ष को भी तूवर कहते हैं। तृषा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. लाङ्गलिकी वृक्ष (करिहारी का वृक्ष) २. कामकन्या, ३. इच्छा, ४. तृट् (प्यास) इस तरह तृषा शब्द के चार अर्थ समझने चाहिये । तेजस् शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने गये १. वैश्वानर (अग्नि, आग) २. दीप्ति, ३. नवनीत (मक्खन) और ४. पराक्रम (पुरुषार्थ)।
रेतस्यसहने पित्ते प्रभावे मज्जिन-काञ्चने । महाभूतान्तरेऽपि स्यात् अथ तेजनकः शरे ॥ ८०७ ॥ तिलादिस्निग्धवस्तूनां स्नेहे तैलं च सिहके।
तोयदो मुस्तके मेघे जलदातरि सर्पिषि ॥८०८ ॥ हिन्दी टीका-तेजस् शब्द के और भी सात अर्थ माने जाते हैं -१. रेतस् (वीर्य) २. असहन (बर्दाश्त न होना) ३. पित्त, ४. प्रभाव, ५. मज्जन (सारिल लकड़ी) ६. काञ्चन (सोना) और ७. महाभूतान्तर (महाभूत विशेष पृथिव्यादि पञ्च महाभूतों में तेजस् नाम का महाभूत)। तेजनक शब्द का अर्थ- १. शर (बाण) होता है । तैल शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. तिलादि स्निग्धवस्तूनां स्नेहः (तिल वगैरह स्निग्धपदार्थ का स्नेह) को तैल कहते हैं और २. सिलक (देश विशेष) को भी तैल कहते हैं । तोयद शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं -१. मुस्तक (मोथा) २. मेघ, ३. जलदाता और ४. सर्पिष् (घृत, घी) इस तरह तोयद शब्द के चार अर्थ समझना। मूल : त्यागी वर्जनशीले स्याच्छूरे दातरि च त्रिषु ।
त्रपा स्त्रीपुंसयोर्लज्जा कुलटा कुलकीर्तिषु ॥ ८०६ ॥ त्रयी वेदत्रये दुर्गा - पुरन्धी-सुमतिष्वपि ।
सोमराजीतरौ त्रस्तो भीते त्रिषु द्रुतेऽद्वयोः ॥ ८१० ॥ हिन्दी टीका-त्यागी शब्द नकारान्त त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. वर्जनशील (त्यागशील) २. शूर (वीर) और ३. दाता। त्रपा शब्द पुल्लिग तथा स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. लज्जा, २. कुलटा (व्यभिचारिणी स्त्री) और ३. कुलकीति (कुल वंश को कीर्ति-ख्याति)। त्रयी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं-१ वेदत्रय (ऋग्वेद-यजुर्वेद और सामवेद) २. दुर्गा, ३. पुरन्ध्री (युवती सुहागिन स्त्री) और ४. सुमति तथा ५. सोमराजोतरु (वाकुची नाम की
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