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११२ | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - चिन्ह शब्द
तो चिरजीवी शब्द त्रिलिंग माना जाता है । चिल्लाभ शब्द पुल्लिंग है और उसका अर्थ - १. प्रसह्य चोर (हठात् चोरी करने वाला) होता है । चिल्ल शब्द भी पुल्लिंग है और उसका अर्थ - १. आततायी पक्षी ( शैतान पक्षी, चिल्ह चिल्होर) होता है । चिल्ली शब्द के दो अर्थ होते हैं -- १. लोघ्र ( वृक्ष विशेष) और २. झिल्लिका (झाल) । चिबुक शब्द का अर्थ - १. ओष्ठाधः (ओठ का नीचा भाग ) । इस प्रकार चिल्ली शब्द के दो और चिबुक शब्द का एक अर्थ जानना चाहिये ।
मूल :
चिह्नमंके वैजयन्त्यां चिह्नितो लक्षितेऽङ्किते । चीनो मृगान्तरे तन्तौ देशभेदेंऽशुकान्तरे ।। ६०५ ॥ शस्यप्रभेदे क्लीबं तु पताकायां च सीसको । चीनकश्चीनकर्पूरे चीनधान्येsपि कीर्तितः ।। ६०६ ॥
हिन्दी टीका - चिह्न शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. अङ्क (चिह्न) और २. वैजयन्ती ( पताका) । चिह्नित शब्द के भी दो अर्थ होते हैं - १. लक्षित (ज्ञान) और २. अङ्कित । चीन शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. मृगान्तर (मृग विशेष) २. तन्तु ( ऊन का धागा ) ३. देशभेद (देश विशेष चीन देश) और ४. अंशुकान्तर (पट्ट वस्त्र विशेष, रेशम का कपड़ा ) किन्तु नपुंसक चीन शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. शस्य प्रभेद (शस्य विशेष चीना माढ़) २. पताका (ध्वजा ) और ३. सीसक (सीसा) । चीनक शब्द भी पुल्लिंग ही माना जाता है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. चीन कर्पूर (चीनी कपूर) और २. चीन धान्य (चीना माढ़) इस तरह चीन शब्द के सात और चीनक शब्द के दो अर्थ जानना ।
मूल :
चीरं वस्त्रे तद्विशेषे रेखाभेदे च गोस्तने ।
चूडायां सीसके जीर्णवस्त्रखण्डे तरुत्वचि ॥ ६०७ ॥ लेखभेदे चीरकस्तु विक्रिया लेखने स्मृतः । चुसन्धान भेदे स्यात् तितिण्डीकेऽम्लवास्तुके ।। ६०८ ॥
हिन्दी टीका - चीर शब्द नपुंसक है और उसके आठ अर्थ होते हैं - १. वस्त्र (कपड़ा) २. तद्विशेष (वस्त्र विशेष, वस्त्राञ्चल ) ३. रेखाभेद (रेखा विशेष ) ४. गोस्तन ( चार लड़ी का हार विशेष) एवं ५. चूडा (चोटला ६. सीसक (शीशा) ७. जीर्णवस्त्र खण्ड ( पुराने कपड़े का टुकड़ा) और 5. तरुत्वच (वल्कल छिलका) । चीरक शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. लेख भेद (लेख विशेष ) और २. लेखने विक्रिया (विकृत लेख) को भी चीरक कहते हैं । चुक्र शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं - - १. सन्धान भेद (सन्धान विशेष अभिषव) २ तितिण्डीक (तेतरि) ३. अम्लवस्तुक (खटाई) इस प्रकार चुक्र शब्द के तीन अर्थ जानना चाहिये ।
मूल :
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काञ्जिकेऽथ पुमान् अम्लवेतसेऽम्लरसेऽपि च ।
चुञ्चुली तिन्तिडी द्यूते चूचूकं तु कुचानने ॥ ६०६ ॥ चुम्बकः कान्त (लोहे स्यात्) पाषाणे घटस्योर्द्धावलम्बने । बहु ग्रन्थक देशज्ञ धूर्ते चुम्बनतत्परे ॥ ६१० ॥
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