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६६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टीका सहित-ग्रन्थिक शब्द मूल : पुमान् करीरे दैवज्ञ सहदेवाख्य पाण्डवे ।
ग्रन्थिलस्तु हितावल्यां विकतकरीरयोः ।। ५१४ ॥ पिण्डालौ गणहासे च तण्डुलीये विकण्टके ।
ग्रन्थियुक्त त्रिषु वलीवं पिप्पलीमूल आद्रके ।। ५१५ ॥ हिन्दी टोका-पुल्लिग ग्रन्थिक शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. करोर (करीर, करील नाम का वृक्ष विशेष, जिसके वसन्त में सभी पत्ते गिर जाते हैं) २. दैवज्ञ (ज्योतिषी) और ३. सहदेवाख्य पाण्डव (सहदेव-माद्रीपुत्र)। ग्रन्थिल शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं
हितावली (हित समूह) २. विकत (कटाय, कटेर शब्द से विख्यात वृक्ष विशेष) ३. करीर (करील वृक्ष विशेष) । पुल्लिग ग्रन्थिल शब्द के और भो तीन अर्थ माने जाते हैं -- १. पिण्डालु (पिण्डेच्छुक) २. गणहास (चोरा नाम का गन्ध द्रव्य विशेष) और ३. तण्डुलीय विकण्टक (तण्डुल कण) किन्तु ग्रन्थियुक्त अर्थ में ग्रन्थिल शब्द त्रिलिंग माना जाता है और १. पिप्पलीमूल और २. आर्द्रक (आइआद) इन दो अर्थों में ग्रन्थिल शब्द नपुंसक ही माना गया है। मूल: मालार्वा-गण्डदूर्वा-भद्रमुस्तासु तु स्त्रियाम् ।
ग्रहोऽनुग्रह - निर्बन्ध - सूर्यादिषु - विधुन्तुदे ॥ ५१६ ॥ ग्रहणे पूतनादौ स्याद् उपरागे रणोद्यमे ।
ग्रहणं स्वीकृतौ शब्दे कर-आदर-इन्द्रिये ॥ ५१७ ।। हिन्दी टीका-स्त्रीलिंग ग्रन्थिला शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं—१. मालादूर्वा (दूभी विशेष) २. गण्डदूर्वा (सफेद दूभी) और ३. भद्रमुस्ता (मोथा, जलमोथा)। ग्रह शब्द पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ होते हैं -१. अनुग्रह (कृपा, दया), २. निर्बन्ध (स्नेह) ३. सूर्यादि (सूर्यादि नवग्रह) ४. विधुन्तुद (चन्द्रमा) ५. ग्रहण ६. पूतनादि (पूतना आदि राक्षसी) ७. उपराग (ग्रहण—सूर्य चन्द्र ग्रहण) और ८. रणोद्यम (युद्ध के लिये उद्यम) । ग्रहण शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं --१. स्वीकृति (स्वीकार करना) २. शब्द, ३. कर (हस्त या टैक्स) ४. आदर और ५. इन्द्रिय (आँख वगैरह इन्द्रिय)। मूल : उपरागे चोपलब्धौ बन्दियपि प्रकीर्तितः ।
ग्रहराज: सूर्य चन्द्र बृहस्पतिषु कीर्त्यते ॥ ५१८ ।। ग्राम: स्वरे संवसथे वृन्दे शब्दादि पूर्वके ।
ग्रामणी: केशवे यक्षे नापिते पुंस्यथ स्त्रियाम् ॥ ५१६ ॥ हिन्दी टीका-ग्रहण शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं- १. उपराग (ग्रहण-सूर्यग्रहण चन्द्रग्रहण) २. उपलब्धि (प्राप्ति) ३. वन्दी । ग्रहराज शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. सूर्य, २. चन्द्र और ३. बृहस्पति ये तीनों ग्रहराज कहे जाते हैं। ग्राम शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं -१. स्वर (ग्राम नाम का स्वर-विशेष), सा रे ग म प ध नी इन सात स्वरों के समुदाय को ग्राम कहा जाता है । २. संवसथ (गांव) ३. शब्दादिपूर्वक वृन्द (शब्द रूप रस गन्ध स्पर्श समुदाय) को भी ग्राम शब्द से व्यवहार किया जाता है । ग्रामणी शब्द पुल्लिग और स्त्रीलिंग (उभयलिंग) माने जाते हैं
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