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नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित --गुरु शब्द | ६१ हिन्दी टीका-गुरु शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं-१. दुर्जर (जिसको पचाना कठिन है उसको भी गुरु कहते हैं। इसी प्रकार २. अध्यापक को भी गुरु कहते हैं। एवं ३. श्रेष्ठ (बड़े आद
'दमी को भी गुरु कहते हैं)। इस तरह कुल मिलाकर गुरु शब्द के दस अर्थ जानना चाहिये। गुल्मी शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं -- १. बसन वेश्म (कपड़े का घर, तम्बू, कनात) २. आमलको (आमला) ३. वनी (छोटा वन जंगल) ४. गृध्रनखी (गोध के नख जैसा अस्त्र) और ५. गुल्मयुत (गुल्म तरु-लताओं से युक्त को भी) गुल्मी कहते हैं। गुह शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. विष्णु, २. कार्तिकेय, ३. राम-मित्र (रामचन्द्र भगवान का गुह नाम का मित्र) और ४. तुरङ्गम (घोड़ा)। गुहा शब्द स्त्रीलिंग है ओर उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. गर्त (गड्ढा) २. सिंह पुच्छोलता (पीठवनीपीठिवनी नाम को लता विशेष) और ३. गह्वर (गुफा)। मूल : गृञ्जनो रक्तलशुने रसोनेऽथ नपुंसकम् ।
विष दिग्ध पशोमांसे ग्रन्थिमूलेऽपि कीर्तितम् ।। ४८७ ।। हिन्दी टीका-पुल्लिग गृञ्जन शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं -१. रक्तलशुन (लाल लहसुन और २. सौन (लहसुन) और नपुंसक गृञ्जन शब्द के भी दो अर्थ माने जाते हैं-१. विषदिग्ध पशुमांस (जहर से मिला हुआ पशु-माँस) और २. ग्रन्थिमूल (बाँस वर्गरह का पोर-गांठ का मूल भाग) इस प्रकार कुल मिलाकर गृञ्जन शब्द के चार अर्थ समझने चाहिये। मूल : गृहं कलत्रे भवने नामधेये बुधैः स्मृतम्।
स्मृतो गृहपतिर्धर्मे गृहस्थे सचिवे पुमान् ॥ ४८८ ।। गृहीतं स्वीकृते प्राप्ते धृते ज्ञाते त्रिलिंगकम् ।
गोकर्णोऽश्वतरे सर्पविशेषे हरिणान्तरे ॥ ४८६ ॥ हिन्दी टीका-गृह शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं -१. कलत्र (स्त्री) कहा भी है-(न गृहं गृहमित्याहुः गृहिणी गृहमुच्यते) इत्यादि । २ भवन (घर) और ३. नामधेय (नाम का भी गृह शब्द से व्यवहार किया जाता है) । गृहपति शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते है१. धर्म, २. गृहस्थ, और ३. सचिव (मन्त्री)। गृहीत शब्द त्रिलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं१. स्वीकृत (स्वीकार किया हुआ पदार्थ) २. प्राप्त, ३. धृत (धारण किया हुआ) ४. ज्ञात (जाना हुआ पदार्थ) । गोकर्ण शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं- १. अश्वतर (खच्चर) २. सर्पविशेष (सूगा सांप) और ३. हरिणान्तर (मृगविशेष कृष्ण मृग)। इस तरह गृह शब्द के तीन और गृहपति के तीन, गृहीत के चार और गोकर्ण शब्द के तीन अर्थ जानने चाहिये।
तीर्थान्तरे मानभेद - गणदेव विशेषयोः । गोकुलं गो समूहे स्याद् गोस्थाने नन्द संस्थितौ ॥ ४६० ।। जैन श्रमणभिक्षायां गोचरी गोचरक्षितौ ।
गोत्रं कुले धने छत्रे संघेवम॑नि कानने ॥ ४६१ ॥ हिन्दी टीका-गोकर्ण शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. तीर्थान्तर (तीर्थ स्थान विशेष) २. मानभेद (माप विशेष, एक बलाश, बोत, दो फुट) और ३. गणदेव विशेष (गण देवता विशेष)
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