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नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-गन्धर्व शब्द | ८५ विशेष) । किन्तु गन्धपुष्पा शब्द १. केतकी (केबड़ा) २. नोली (नीलगरी) और ३. गणिकारी (जयपर्णअरणी नाम से प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) को भी गन्धपुष्पा कहते हैं।
गन्धर्वो मृगभेदे स्यात्पुंस्कोकिल-तुरङ्गयोः ।
अन्तराभवसत्वे च गायके दिव्य गायने ॥ ४५५ ।। हिन्दी टोका-गन्धर्व शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं.--१. मृगभेद (मृग विशेष) २. पुस्कोकिल (कोयल) ३. तुरङ्ग (घोड़ा) ४. अन्तराभवसत्त्व (जिसके अन्दर में सत्त्व है उसको भी गन्धर्व विशेष कहते हैं) ५. गायक (गान करने वाला) और ६. दिव्य गायन (गन्धर्व योनि विशेष -- विद्याधर गण)। इस प्रकार गन्धर्व शब्द के कुल छह अर्थ जानना। मूल : गान्धिको गन्धवणिजि गन्धविक्रेतरि स्मृतः ।
अथ गन्धवती पृथ्वी वनमल्ली-सुरासु च ।। ४५६ ।।
मुरायां वायुपुर्याञ्च व्यासमातरि कीर्तिता ।। ४५७ ।। हिन्दी टीका-गान्धिक शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. गन्धवणिक (सेण्ट वगैरह का व्यापारी) और २. गन्धविक्रेता (अतर विक्रेता)। गन्धवती शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं -१. पृथ्वी, २. वनमल्ली (जू ही) ३. सुरा (मदिरा-शराब) ४. मुरा (मुरा नाम का सुगन्ध द्रव्य विशेष) ५. वायुपुरी (वायु की पुरी विशेष) और ६. व्यासमाता (व्यास की माता योजनगन्धा मत्स्योदरी मत्स्यगन्धा से प्रसिद्ध)। . मूल :
गमो जिगीषुगमने प्रस्थानाक्षविवर्तयोः ।
अपर्यालोचिते मार्गे सहपाठेऽपि कीर्तितः ॥ ४५८ ॥ हिन्दी टीका-गम शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. जिगीषु गमन (विजय चाहने वाले का गमन), २. प्रस्थान (यात्रा), ३. अक्षविवर्त (पाशा का उल्टा परावर्तन), ४. अपर्यालोचित मार्ग (अविचारित मार्ग) और ५. सहपाठ (समान पाठ) । इस तरह गम शब्द के ५ अर्थ हैं ।
गमक: स्वश्रुतिस्थानाच्छायां श्रुत्यन्तराश्रयाम् ।
स्वरो यो मूर्च्छनामेति गमकः स इहोच्यते ।। ४५६ ।। हिन्दी टीका-गमक शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-जो स्वर (सा रे ग म प ध नी) अपने श्रुतिस्थान से दूसरी श्रुति की छाया-अनुरणन को प्राप्त करता हुआ मूच्र्छना-आरोह-अवरोहरूप ताल लयाश्रित भेद को प्राप्त करता है उसे गमक कहते हैं-इसो तात्पर्य से कहा है-स्वश्रुति इत्यादि ।
गयो राजर्षिभेदेऽपि भेदे वानर दैत्ययोः ।
गया तु गयराषिपुरी प्रोक्ता मनीषिभिः ॥ ४६० ॥ हिन्दी टीका-गय शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. राजर्षिभेद (राजर्षिविशेष) २. वानरभेद (वानरविशेष) और ३. दैत्यभेद (दैत्यविशेष)। गया शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थगय राषिपुरी (गय नामक प्रसिद्ध राजर्षि की नगरी विशेष) जिसको अभी गया शब्द से व्यवहार किया जाता है जो कि दक्षिण विहार प्रान्त में पितरों का तीर्थस्थान मानी जाती है।
मूल :
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