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नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - खरु शब्द | ८१ मूल :
खरुः शिवे सिते. दर्पे कामे दन्ते तुरङ्गमे ।
त्रिषुश्वेते निषिद्ध करुचौ निर्बोध तीक्ष्णयोः ।। ४३३ ।। हिन्दी टीका-खरु शब्द पुल्लिग है और उसके दस अर्थ होते हैं-१. शिव, २. सित (सफेद) ३. दर्प, ४. काम, ५. दन्त, ६. तुरङ्गम (घोड़ा) ७. श्वेत त्रिषु (अत्यन्त सफेद अर्थ में त्रिलिङ्ग है) ८. निषिद्धक रुचि (विचित्र स्वभाव) ६. निर्बोध (बोध रहित) और १०. तीक्ष्ण (उग्र स्वभाव वाला)। मूल : खजूं रं रौप्य-खलयोः हरिताले फलान्तरे ।
खर्जू रीपादपेऽक्लीवं वृश्चिकेऽपि प्रकीयते ॥ ४३४ ॥ हिन्दी टोका-खजूर शब्द नपुंसक है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं - १. रौप्य २. खल (दुष्ट) ३. हरिताल (हरताल नाम का औषध विशेष) ४. फलान्तर (फल विशेष) ५. खजूरी पादप (खजूर का वृक्ष) और ६. वृश्चिक (बिच्छू)।
खप रस्तस्करे छत्रे भिक्षा पात्रे-कपालयोः ।
धूर्तेऽथ कुब्जके खो दशवृन्देऽपि शेवधौ ॥ ४३५ ॥ हिन्दी टीका-खर्पर शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. तस्कर (चोर) २. छत्र (छाता) ३. भिक्षा पात्र (खप्पर) ४. कपाल (खप्पर विशेष) ५. धूर्त (वञ्चक)। खर्व शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. कुब्जक (कुब्जा) २. दश वृन्द (खर्व नाम का संख्या विशेष) और ३. शेवधि (खजाना)। मूल : खलं कल्के खलाधाने भूमौ स्थाने नपुंसकम् ।
पुमान् तमालवृक्षे स्यात् सूर्यधुस्तूर वृक्षयोः ॥ ४३६ ॥ हिन्दी टोका-नपुंसक खल शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. कल्क (पाप) २. खलाधान (खलिहान) ३. भ्रमि, ४. स्थान, किन्तु पूल्लिग खल शब्द के तीन अर्थ होते हैं—१. तमाल वृक्ष, २. सूर्य और ३. धुस्तूर वृक्ष (धतूर का वृक्ष) इस तरह नपुंसक पुल्लिग खल शब्द के सात अर्थ हुए। मूल : त्रिलिंगो दुर्जने नीचे खल्वाटे खलतिः पुमान् ।।
खल्लो वस्त्रप्रभेदे स्यात् जायुमर्दन भाजने ।। ४३७ ।। हिन्दी टीका -त्रिलिंग खल शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं -१. दुर्जन ओर २. नोच (अधम)। खल्ल शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं -१. वस्त्रप्रभेद (वस्त्र विशेष) २. जायुमर्दन भाजन (दवा-औषध के मर्दन का पात्र विशेष, खल-खली शब्द से प्रसिद्ध है)। मूल : अवटे नर्मपुटके च चर्म-चातकपक्षिणोः ।
खुर: शफे कोलदले क्षुरे खट्वादिपादुके ॥ ४३८ ।। हिन्दी टोका-खल्ल शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. अवट (गड्ढा-गत) २. चर्मपुटक (चमड़े का पूरा) ३. चर्म (चमड़ा) और ४. चातक पक्षी। खुर शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं -१. शफ (खर-खरी) २. कोलदल (शूकर का झुण्ड) ३. क्षुर (छुरा) और ४. खट्वादिपादुका (चारपाई पलंग वगैरह की पादुका)।
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