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५६ जैन पुरानकोश
इन्द्रसेन -- (१) रत्नपुर के राजा श्रीषेण का पुत्र और उपेन्द्रसेन का भाई । यह कौशाम्बी के राजा महाबल की पुत्री श्रीकान्ता से विवाहित हुआ था । मपु० ६२.३४०-३५२, पापु० ४.२०३
(२) जरासन्ध का एक योद्धा नृप । मपु० ७१.७६-७८ इन्द्राणी (१) वैजयन्तपुर के राजा पृथिवीधर की रानी वनमाला की जननी । पपु० ३४.११-१५
(२) अलंकारपुर के राजा सुमेश की रानी, माली, सुमाली बर माल्यवान् की जननी । पपु० ६.५३० ५३१
(३) इन्द्र की शची । गर्भगृह में जाकर तीर्थंकरों की माता के पास मायामयी शिशु सुलाकर तीर्थकरों को अभिषेक के लिए यही इन्द्र को देती है। अभिषेक के पश्चात् तीर्थकरों का प्रसाधन, विलेपन,
अंजन संस्कार आदि करके यही जिनमाता के पास उन्हें सुलाती है । मपु० १३.१७ ३९, १४.४-९, पपु० ३.१७१-२१४ इन्द्राभिषेक - गृहस्थ की चौतीसवीं गर्भान्वय क्रिया । मपु० ३८.५५६३, इस क्रिया में पर्याप्तक होते ही नृत्य, गीत, वाद्यपूर्वक देवों द्वारा इन्द्र का अभिषेक किया जाता है । मपु० ३८.१९५-१९८ इन्द्रायुध - (१) राम का सिंहरथवाही सामन्त । पपु० ५८.११
(२) शक संवत् सात सौ पाँच में उत्तर दिशा का राजा। इसी के समय में हरिवंशपुराण की रचना श्रीवर्धमानपुर के नन्दराज द्वारा निर्मापित श्री पार्श्वनाथ मन्दिर में आरम्भ की गयी थी । हपु० ६६. ५२-५३
इन्द्रायुधप्रभ— वज्रकण्ठ का पुत्र, और इन्द्रमत का पिता । पुत्र को राज्य देकर यह दीक्षित हो गया था । पपु० ६.१६०-१६१ इन्द्रावतार - गर्भान्वय को त्रेपन क्रियाओं में अड़तालीसवीं क्रिया । इस क्रिया में आयु के अन्त में अर्हन्तदेव का पूजन कर, मोक्षप्राप्ति की कामना के साथ इन्द्र स्वर्ग से अवतरित होता है । मपु० ३८.५५६३, २१४-२१६ दे० गर्भान्वय
इन्द्रासन — चमरचंचपुर का राजा । यह विद्याधर अशनिघोष का जनक था। इसकी पत्नी का नाम आसुरी था । मपु० ६२.२२९, पापु० ४.१३८-१३९
इन्द्रिय- (१) जीव को जानने के स्पर्शन, रसना, घाण, चक्षु, और धोन ये पाँच साधन । इनमें स्थावर जीवों के केवल स्पर्शन इन्द्रिय तथा त्रस जीवों के यथाक्रम सभी इन्द्रियाँ पायी जाती हैं । भावेन्द्रिय और द्रव्येन्द्रिय के भेद से ये दो प्रकार की भी हैं। इनमें भावेन्द्रियाँ लब्धि और उपयोग रूप हैं तथा द्रव्येन्द्रियाँ निवृत्ति और उपकरण रूप । स्पर्शन, अनेक आकारोंवाली है, रसना खुरपी के समान, घ्राण तिलपुष्प के समान, चक्षु मसूर के और घ्राण यव को नली के आकार की होती है । एकेन्द्रिय जीव की स्पर्शन इन्द्रिय का उत्कृष्ट विषय चार सौ धनुष है, इसी प्रकार द्वीन्द्रिय के आठ सौ धनुष और त्रीन्द्रिय के सोलह सौ धनुष चतुरिन्द्रिय के बीस यो धनुष और असैनी पंचेन्द्रिय के चौसठ सौ धनुष है। रसना इन्द्रिय के विषय द्वीन्द्रिय के चौसठ धनुष, वीन्द्रिय के एक सौ अाई धनुष चतुरिन्द्रिय के दो
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इन्द्रसेन इला
सौ छप्पन और असैनी पंचेन्द्रिय के पाँच सौ धनुष हैं । घ्राणेन्द्रिय का विषय श्रीन्द्रिय जीव के सौ धनुष, चतुरिन्द्रिय के दो सौ धनुष और असैनी पंचेन्द्रिय के चार सौ धनुष प्रमाण है। चतुरिन्द्रिय अपनी चक्षुरिन्द्रय के द्वारा उनतीस सौ चौवन योजन तक देखता है, और असैनी पंचेन्द्रिय के चक्षु का विषय उनसठ सौ आठ योजन है । असैनी पंचेन्द्रिय के श्रोत का विषय एक योजन है, सैनी पंचेन्द्रिय जोव नौ योजन दूर स्थित स्पर्श, रस, और गन्ध को यथायोग्य ग्रहण कर सकता है और बारह योजन दूर तक के शब्द को सुन सकता है । सैनी पंचेन्द्रिय जीव अपने चक्षु के द्वारा सैंतालीस हजार दो सौ त्रेसठ योजन की दूरी पर स्थित पदार्थ को देख सकता है । हपु० १८.८४
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(२) छः पर्याप्तियों में इस नाम की एक पर्याप्ति । हपु० १८.८३ इन्द्रियसंरोध मुनियों के अट्ठाईस मूलों में पाँच मूलगुण ० १८.७० इन्द्रोपपावक्रिया गर्भान्वय की तिरेपन क्रियाओं में तेतीसवीं क्रिया । इस क्रिया की प्राप्त जीव देवगति में उपपाद दिव्य शय्या पर क्षणभर में पूर्ण यौवन को प्राप्त हो जाता है और दिव्यतेज से युक्त होते हुए वह परमानन्द में निमग्न हो जाता है। तभी अवधिज्ञान से उसे अपने इन्द्र रूप में उत्पन्न होने का बोध हो जाता है । मपु० ३८.५५ ६३, १९०-१९४
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इन्धक — कुशस्थल नगर का निवासी ब्राह्मण, पल्लवक का भाई । मुनियों को आहार देने के प्रभाव से यह मरकर हरिक्षेत्र में आर्य हुआ था । इसके पश्चात् उसने देवगति प्राप्त की । पपु० ५९.६-११
इन्धन – एक अस्त्र | लक्ष्मण और रावण ने इसका प्रयोग एक दूसरे पर किया था । मपु० ७४.१०५
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इभ - हाथी । विजयार्धं पर्वत पर उत्पन्न चक्री के चौदह रत्नों में एक सजीव रत्न । मपु० ३७.८३-८६
इभकर्ण - एक वटवृक्षवासी यक्ष । इसने अपने स्वामी यक्षराज को राम, सीता और लक्ष्मण के वन में आने की सूचना दी थी। पपु० ३५.४०-४१
इभपुर — हस्तिनापुर । विहार करते हुए तीर्थंकर आदिनाथ यहाँ आये थे । पु० ९.१५७
इभव - विभीषण का सामन्त । लंका से राम के पास जाते समय शस्त्र और श्रेष्ठ सामग्री लेकर यह भी विभीषण के साथ गया था । पपु० ५५.४०-४१
इभवाहन — कुरुवंश का एक राजा । यह हस्तिनापुर में राज्य करता
था। चूड़ामणि इसकी रानी थी और इन दोनों के मनोदयानाम की पुत्री हुई थी । पपु० २१.७८-७९ हपु० ४५.१५
इभ्य- (१) श्रेष्ठी - सामाजिक सम्मान का एक पद । मपु० ७२.२४३, हपु० ४५.१००
(२) वैश्य । मपु० ७६.३७
इभ्यपुर - भरतक्षेत्र का एक नगर । हपु० ६०.९५
इला - ( १ ) भरतक्षेत्र के हिमवान् पर्वत पर स्थित ग्यारह कूटों में चौथा
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