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५०२: जैनपुराणको
क्रियावादी
नियति, स्वभाव, काल, देव और पौरुष इन पाँच को स्वतः परतः, नित्य और अनित्य इन चार से गुणित करने पर बीस भेद होते हैं तथा इन बीस भेटों को जीवादि नौ पदार्थों से गुणित करने पर इसके एक सौ अस्सी भेद होते हैं।
हपु० १०.४९-५१
अक्रियावादी
जीवादि सात तत्त्व-नियति, स्वभाव, काल, देव और पौरुष की अपेक्षा न स्वतः हैं और न परतः । अतः सात तत्त्वों में नियति आदि पाँच का गुणा करने पर पैंतीस और पैंतीस में स्वतः परतः इन दो का गुणा करने पर सत्तर भेद हुए । जीवादि सात तत्व नियति और काल की अपेक्षा नहीं है अतः सात में दो का गुणा करने पर चौदह भेद हुए । इन चौदह भेदों को पूर्वोक्त सत्तर भेदों में मिला दिये जाने पर अक्रियावादियों के चौरासी भेद होते हैं। हपु० १०.५२-५३
अज्ञानवादी
जीवादि नौ पदार्थों को सत्, असत्, उभय, अवक्तव्य सद् अवक्तव्य, असद् अवक्तव्य और उभय अवक्तव्य इन सात भंगों से कौन जानता है इस अज्ञानता के कारण नौ पदार्थों में सात भंगों का गुणा करने से त्रेसठ भेद होते हैं । इनमें जीव की सत् उत्पत्ति को जाननेवाला कौन हैं ? जीव असत् उत्पत्ति को जाननेवाला कौन है ? जीव की सत्-असत् उत्पत्ति को जाननेवाला कौन है ? और जीव की अवक्तव्य उत्पत्ति को जाननेवाला कौन है ? भाव की अपेक्षा स्वीकृत इन चार भेदों के अज्ञानवादियों के कुल सड़सठ भेद होते हैं। हपु० १०.५४-५८
विनयवादी
माता, पिता, देव, राजा, ज्ञानी, बालक, वृद्ध और तपस्वी इन आठों में प्रत्येक की मन, वचन, काय और दान से विनय किये जाने से इसके बत्तीस भेद होते हैं । हपु० १०.५९-६०
मुक्त जीव की विशेषताएं
क्र०
१.
२.
३.
४.
५.
नाम
अनश्वरता
अचलता
अक्षयपना
८. अनन्तसुखपना अव्याबाधपना ९. नीरजसपना अनन्तज्ञानीपना १०. निर्मलपना
१. दर्शन - प्रतिमा २. व्रत - प्रतिमा
६. अनन्तदर्शनपना ११. अच्छेद्यपना ७. अनन्तवीर्यपना १२. अभेद्यपना
१३. अक्षरपना १४. अप्रमेयपना मपु० ४२.९५-१०३
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योग और प्रतिमाएँ प्रतिमाएँ
७. बह्मचर्य-प्रतिमा
८. आरम्भत्याग- प्रतिमा
३. सामायिक प्रतिमा ४. प्रोषधोपवास- प्रतिमा ५. सचित्तत्याग प्रतिमा ६. रात्रिभुतित्वा प्रतिमा
१. सत्यमनोयोग
२. असत्यमनोयोग ३. उभयमनोयोग ४. अनुभयमनोयोग
५. सत्यवचनयोग
६. असत्यवचनयोग
वीवच० १८.३६-३७, ६०-७०
योग-भेद
हरिवंशपुराणकार ने चार मनोयोग चार वचनयोग और पाँच काययोग मिलकर तेरह प्रकार का बताया है। टीकाकार ने इनके निम् नामों का उल्लेख किया है
९. परित्याग प्रतिमा १०. अनुमतित्याग-प्रतिमा ११. उद्दिष्टत्याग-प्रतिमा
१. अहिंसात ४. स्वदार संतोषव्रत
७. उभयवचनयोग
प्रमत्तसंयतगुणस्थान में आहारक काययोग और आहारकमिष कायपोग की संभावना रहने से योग के पन्द्रह भेद भी माने गये हैं ।
हपु० ५८.१९७
१. सामायिक २. प्रोषधोपवास
८. अनुभवचनयोग
९. औदारिक काययोग
१०. औदारिकमिकाययोग
११. वैक्रियक काययोग
१२. वैक्रियकमिश्र काययोग १३. कार्मणकाययोग
व्रत और उनके अतिचार
व्रत
पंचाणुव्रत २.
५. इच्छापरिमाणव्रत
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गुणव्रत
१. दिव्रत
२. देशव्रत
३. अनर्थदण्डव्रत - पापोपदेश, अपध्यान, प्रमादाचरित, हिंसादान और दुःश्रुति ।
परिशिष्ट
अतिचार असाणुव्रत के अतिचार
१. बन्ध-गतिरोध करना । २. वध दण्ड आदि से पीटना ।
३. छेदन -कर्ण आदि अंगों का छेदना ।
३. अचौर्याणुव्रत
हपु० ५८.१३८-१४२
शिक्षाव्रत
३. उपभोग- परिभोगपरिमाण ४. अतिथिसंविभाग
हपु० ५८.१४४-१४७
४. अतिभारारोपण - अधिक भार लादना ।
५. अन्नपान निरोध - समय पर भोजन-पानी नहीं देना ।
पु० ५८.१५३-१५८
हपु० ५८.१६४-१६५.
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